अंधे मोड़ पर खड़ा लोकतंत्र….
जब देश की राजनैतिक पार्टियां…. शासन प्रशासन…. और जन मानस भी लोकतंत्र के यज्ञ की पूर्व बेला में… यज्ञ की तैयारियों में जुटा है… और ये सवाल बिजली की तरह कौंध जाए.. कि क्या भारतीय लोकतंत्र अंधे मोड़ पर खड़ा है…. तो अधिकांश पाठक इन पंक्तियों को पढ़कर चौंक सकते हैं… लेकिन इस सवाल का सर उठाना…. किन्हीं कारणों से है… उन्हीं कारणों पर गौर करने से पहले जरूरी है कि… हम यह जान लें कि… व्यक्तिगत रूप से हम किसी भी राजनैतिक दल की रीति नीति , विचारधारा से प्रभावित होकर उसके समर्थक अथवा विरोधी हो सकते हैं…. बावजूद इसके हम इस बिंदु पर एकमत हैं कि राष्ट्र हित सर्वोपरि…. लोकतांत्रिक और गणतांत्रिक देश में …. जनता ही सर्वोच्च….।
राजनीति के विचार विमर्श के सफर की शुरुआत होती है…. हालिया के उस सुप्रीम फैसले से…. जिसमें चंडीगढ़ मेयर पद के चुनाव में कोर्ट ने…. निर्वाचन अधिकारी को बुलाकर न केवल लताड़ा… बल्कि उस पर धारा 340 के तहत नोटिस भी जारी किया है… वोटों की यह चोरी लोकतंत्र के लिए एक खतरा तो है…. ।
दूसरा कारण भी सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से जन्म लेता है…. जिसमें इलेक्ट्रोरल बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया गया….. देश के हर नागरिक और संस्था इस बात के लिए कानूनी रूप से प्रतिबद्ध है कि वह अपनी आय का स्त्रोत उजागर करें…. अथवा पूछने पर बताया जाए… लेकिन चतुर राजनीति ने राजनैतिक दलों को मिलने वाले चंदे के स्त्रोत को इस बॉन्ड के जरिए गुप्त रखने का कानून ही बना लिया… और सर्वोच्च न्यायालय ने इसे संविधान के विपरीत बताकर… लोकतंत्र की हाल फिलहाल रक्षा तो की… लेकिन सवाल यही है कि आने वाले समय में…. यही प्रक्रिया बदले स्वरूप में चालाक राजनीति फिर से तो लागू नहीं कर लेगी…. जिससे यही पता न चल पाए कि…. कहीं भारतीय राजनीति को विदेशी पूंजीपति तो संचालित नहीं कर रहे हैं…।
जिस कालखंड में हम सांस ले रहे हैं…. उसी दौर में ईवीएम को लेकर आंदोलन चल रहा है… जिसमें प्रमुख मांग यही है कि…. आम चुनाव में मशीनों का प्रयोग न किया जाकर…. मत पत्र से वोटिंग कराई जाए…. कारण वही कि मशीन को हैक किया जाकर अथवा कोई निश्चित समय सीमा में सेट कर डाले गए वोटों को किसी एक पक्ष के हिस्से में किए जाने की संभावना को खत्म किया जा सके… इस पर सरकार भले ही खामोशी अख्तियार करे… लेकिन जो भी दल विपक्ष में होता है… वह ईवीएम के दुरुपयोग का आरोप सत्ता पक्ष पर लगाता रहा है…. । एक जानकार इसका समाधान यह भी बताते हैं कि ईवीएम से वोटिंग कराई जाकर…. मतगणना के दौरान कुछ प्रतिशत मशीनों के वोटों की गिनती…. वीपीपेट की गणना से मिलवाई जाए…।
तीसरा बड़ा कारण है….. हॉर्स ट्रेडिंग… यानि जनप्रतिनिधियों की खरीद फरोख्त कर जनता की चुनी हुई सरकारों को अपदस्थ करना… और अपनी पार्टी की सरकार बना लेना…. यह स्थिति भी लोकतंत्र के लिए घातक है …. इसमें एक और पेंच जुड़ गया है कि सरकारी संस्थाओं का डर दिखा कर भी उन्हें अपने दल से बगावत करने को मजबूर कर देना… हालिया दौर में यह उदाहरण बहुतायत देखने में आ रहे हैं….. जिसमें लोभ, लालच, भय या अन्य तरीके से सरकार गिराने और बनाने का खेल लोकतंत्र को अपनी दिशा से भटका रहा है।
इसी कड़ी में दल बदल किए जाने की कड़ी भी जुड़ती है… हालांकि इस पर रोक लगाने के लिए दल बदल विरोधी कानून अस्तित्व में है….. लेकिन कानून में अपनी सुविधा की गली तलाशना या सुरंग बना लेना… राजनीति की चतुरता का कमाल …. है भी कमाल का…। कुछ विशेषज्ञ यह विकल्प देते हैं कि इस पर प्रभावी रोक लगाने के लिए… दल बदलने वाले को छह साल के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित कर देना चाहिए….।
चौथा कारण एक और नजर आता है कि… विपक्ष मुक्त भारत…. यानि जब चुनाव का समय आए… तो सत्ता को ताकतवर चुनौती दे सके … ऐसा विपक्ष नहीं हो…. बीते समय में देश का हर नागरिक इसको अच्छे से देख रहा है कि…. विपक्ष को नेस्तनाबूत करने के सत्ता पक्ष एड़ी चोटी का जोर लगा रहा है….. जबकि लोकतंत्र का सबसे खूबसूरत पहलू ही यही है कि… विपक्ष जितना मजबूत होगा… लोकतंत्र भी उतना ही मजबूत होगा…। ये हमारे देश के चुनावों में नजर भी आता है… नब्बे के दशक के बाद से देश में गठबंधन के सरकारों का दौर आया…. जो 2014 के आम चुनावों में समाप्त हुआ… 2009 के चुनावों तक विपक्ष काफी मजबूत रहा….. 2019 के आम चुनावों में सत्तारूढ़ भाजपा ने ऐतिहासिक विजय श्री का वरण करते हुए…. 303 सीटों के साथ सत्ता में वापसी की…. आंकड़ों के लिहाज से देखा जाए तो इस चुनाव में भी सत्ता प्राप्त करने वाली भाजपा को लगभग 38 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए….. लेकिन विपक्ष में 62 फीसदी वोट तो गए…. लेकिन विपक्ष के बिखरा होने की वजह से…. कोई भी विपक्षी दल… संसद में प्रमुख विपक्षी दल का संवैधानिक तमगा हासिल नहीं कर सका…. नतीजा यह हुआ कि सरकार द्वारा लाए जाने बिलों पर स्वस्थ लोकतांत्रिक बहस नहीं हो सकी… जहां बहस की नौबत भी आई तो सत्ता ने विपक्षी सांसदों को निलंबित करते हुए… उन बिलों को ध्वनिमत से पारित करा लिया… यानि जनता को उन कानूनों के लागू होने की जानकारी तो मिली… लेकिन उसके हानि लाभ के बारे में कुछ नहीं पता चला….।
एक कारण यह भी है कि आम चुनाव के दौरान लागू होने वाली आदर्श आचार संहिता का पालन करवाना केंद्रीय चुनाव आयोग का दायित्व है…. आचार संहिता के उल्लंघन की स्थिति पर… 2019 में चुनाव आयुक्त श्री लवासा ने जो कार्यवाही करना चाही…. उसके फलस्वरूप रातोंरात उन्हें अन्यत्र स्थानांतरित कर देना.. लोकतंत्र को कमजोर कर गया… परिणाम यह हुआ कि चुनाव आयोग को “केंचुआ ” की तरह रीढ़ विहीन बना दिया…. उच्चतम न्यायालय ने अपने सुप्रीम फैसले में जब चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए एक पैनल बनाया जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश को भी शामिल किया …. लेकिन सत्ता ने संख्या बल के आधार पर एक नया कानून बनाकर फैसले को पलटते हुए….. पैनल से भारत के मुख्य न्यायाधीश को बाहर कर…. पीएम और विपक्ष के नेता सहित एक केंद्रीय मंत्री की पैनल को अस्तित्व में ले आए.. यहीं से लोकतंत्र के मनमाने संचालन का खतरा बढ़ा…।
ये सभी कारण इशारा करते हैं कि भारतीय लोकतंत्र एक अंधे मोड़ पर खड़ा है…. जहां यह तय नहीं कि हम कौन सा मोड़ मुड़ेंगे…. वो जहां से लोकतंत्र को मजबूती मिलती है.. या फिर वो जहां लोकतंत्र इतना मजबूर हो जाएगा…. कि गणतंत्र को भी खतरे के निशान पर देखने लगेंगे…. चलिए यहां यह खुलासा कर दें कि….. लोकतंत्र यानी जनता की सरकार, जनता के लिए , जनता द्वारा चुनी जाना…. गणतंत्र वो जहां लोकतांत्रिक तरीके से चुनी सरकार…. भारतीय नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों को बनाए रखे… नागरिकों के हितों की रक्षा करते हुए… जन कल्याणकारी प्रशासन की व्यवस्था को सुनिश्चित करे….।
हाल यह है कि भारतीय राजनीति में सहभागिता करने वाले राजनैतिक दलों में भी आंतरिक लोकतंत्र के प्रावधान… पार्टियों के संविधान में हैं…. लेकिन सर्वसम्मति के नाम पर अधिकांश पार्टियों के मुखिया… निर्वाचित नहीं मनोनीत हो रहे हैं ….. इससे भी एक कदम आगे बढ़ाकर… विश्व की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी का दंभ भरने वाले दल ने अपनी पार्टी के संविधान में यह संशोधन हाल ही में किया है कि… उसकी कार्यकारिणी अब यह तय करेगी कि….. पार्टी की बागडोर अध्यक्ष के रूप में कौन संभालेगा… यानि निर्वाचन तो दूर की बात… अब मनोनयन भी गिनती के लोग कर देंगे… सर्वसम्मति की भी आवश्यकता नहीं….।
क्या आसन्न आम चुनावों में…. लोकतंत्र को भारत का जनमानस ऐसा सशक्त मोड़ देगा…. जिसके उस पार लोकतंत्र का उजास हो…. या फिर ऐसा जहां गणतंत्र ही तमस में समा जाने की स्थिति में आ जाए…?
शैलेश तिवारी , सीहोर