विदेशों में अनवरत जारी रामायण के पाठ, कारण जानकर रह जाएंगे हैरान- वेस्टइंडीज से डॉ अजय शर्मा
लेख
विदेशों में अनवरत जारी रामायण के पाठ, कारण जानकर रह जाएंगे हैरान-
वेस्टइंडीज से डॉ अजय शर्मा
यहां सबसे पहले हम अपने पाठकों को अवगत करा दें कि लेखक डॉ अजय का मुख्य लेख हिन्दी मे है । अंग्रेजी पाठकों को ध्यान मे रख कर Background English मे लिखा गया है, जिसका हिन्दी मे गूगल अनुवाद लेख के अंत मे है ।
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https://en.m.wikipedia.org/wiki/Kashmir_Princess
Dr अजय शर्मा: Lusaka Ramayan
Background :
I left Zambia in 2004 after living there for more than 12 years.
Way back in the 70’s, in the beautiful city of Lusaka, the Capital of Zambia ( Africa), some 4- 5 expatriate families started reciting Shri Ramcharitramanas at their homes on a regular basis.
Later, his holiness, Shri Krishnanand Sarasvati of Rajasthan,
India, whose karm-bhumi was Africa, paid a visit to Lusaka.
Swamiji met with all the professionals–expats, locals, businessmen & others. Upon finding the requisite platform, he laid the foundation upon which a charitable organization, Human Service Trust ( HST), was established. Human Service Trust derives its strength from the three pillars Seva, Satsang, and Sangathan. The foundation of Human Service Trust marked the commencement of formal satsang sessions, eye camps, hospices, the building of schools imparting free education to the underprivileged, and many other projects for the impoverished. Subsequent Ramayan Paths took place under the auspices of HST.
Usually hosted on a weekend at someone’s residence/temple, a minimum of one Ramayan would take place once a month. The Akhand Path would typically commence at 8 a.m. on a Saturday morning, and after non-stop, dedicated 29 hours of recitation, it would finally culminate on Sunday 1.00 p.m.
108 paths of Ramayana constitute one Mala, and as of Feburary 2004, 6th mala was in progress.
Dixit Ji
It would be unimaginable to write the history of Lusaka Ramayan without mentioning Shri M.C Dixitji.
I met him briefly once in the late 90s, when he was invited as a chief guest to grace the occasion of completion of 5th Mala of the Akhand Ramayan in Lusaka. He was quite elderly then and had settled in Delhi. Much of the information regarding Dixitji came from his contemporaries residing in Lusaka.
Dixitji came on deputation in Zambia and was possibly serving as director at the Airport Lusaka. With some 4-5 families, he started the Ramayan path much ahead of the first ever visit of Swamiji to Lusaka. He was a Rambhakt to the core.
Prior to his arrival in Lusaka and much earlier, Dixitji served as a first officer with Air India. Unlike his religious wife, he was not much of any religious inclination.
In 1955, while flying Kashmir Princess flight 300, Air India had a mid-air explosion. All the passengers on-board died. The crew also perished in the sea. At the time of this tragic accident, the Akhand-Ramayan session was in progress at his residence in India. When the news of the crash and disappearance of Mr Dixitji at the sea was broken to Mrs. Dixit, she refused to abandon Ramayan recitation.
Mr. Dixit remained afloat in the sea for 3 days. He and two others were the lone survivors of that crash. He was spotted by some fisherman in Indonesian waters and later rescued in an unconscious state with injuries by a naval ship.
This crash transformed him completely, and from almost a non-believer, he became an ardent devotee of Lord Ram.
Mr. Dixit was the pioneer of the Lusaka Ramayan, which has flourished for more than 50 years. His tale serves as a source of inspiration and hope in the darkest hours of life. He is the epitome of unadulterated devotion and dedication to Ramayan, which will always remain etched in the hearts of devotees for generations to come.
A copy of the link to that mid-air crash is given at the end of this article.
International Conference.
In the year 1999, Human Service Trust hosted an international conference on Ramayan, in Lusaka. The participants were from Zambia, France, India, and Mauritius.
Tribute:
Ramayan and other HST activities provided a platform for social, cultural, and religious integration in society. Not only did it strengthen the Indian community, but it also had a profound effect on the value- based upbringing and the overall development of the younger generation. These youths, whether in Lusaka or abroad, did very well in their lives.
This write-up is a tribute to those whose names are mentioned in the article and also to the countless others for the immense contributions they made. Their devotion, dedication, and unwavering commitment to the Ramayana and all other HST projects will be cherished for times to come in the annals of Lusaka Ramayan history.
Jay Shree Ram
Invitation
All are cordially invited for an Akhand Ramayan Path at 4- Teal Court, Church road Lusaka commencing at 8 a.m on Saturday the 25th July 1992..
सरकते-सरकते तारीख आ पहुंची 24 July, अखण्ड-रामायण आरम्भ से मात्र एक दिन दूर ।
Friday की दोपहर, Lunch के कुछ बाद ही Teal Court पर एकाएक बढ़ उठी चहल-पहल । श्रीमति प्रसाद, नीलम शुक्ला, अरविंदा बेन, शशि पारिख, नीरू भंडारी, रेनू जैन, आशा विजयवर्गीय और अन्य कई महिलाओ का आगमन।
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दूर से ही,… खिलखिलाहटों का शोर, इस बात का सूचक की युवाओं की टोली भी आ पहुंची है । और फिर आधे घंटे तक उस Car-park मे वो युवा gang… Kapil, Manju, Anu, Bandu और Shagun, सभी गपशप मे मगन ।
अंदर उस Hall मे सभी व्यस्त, कोई मंदिर की सजावट मे, कोई ताज़े फूलों की माला बना रहा, तो कोई राम, लक्ष्मण, जानकी और हनुमानजी के नये वस्त्रों को व्यवस्थित रूप से रख रहा । युवाओं की टोली भारी समान की अफरा-तफरी के साथ Hall के decoration मे व्यस्त, साथ ही रात्रिकालीन रामायण पढ़ने वालों के लिये एक अलग कमरे की व्यवस्था को final touches । इधर ladies मे चाय-नमकीन का लगातार दौर, तो उधर youngsters की लगातार खुलतीं Coke/Fanta की bottles और chips के पैकट । कामकाज और गप्पों मे समय का कुछ पता ही नही रहा, कब शाम ढ़ली और कब रात हुई ।
दिन बदला, तारीख बदली । शनिवार की सुबह । बाहर अभी भी अंधेरा । घड़ी की सुई 5 a.m का इशारा कर रही । । सड़क पर किसी गाड़ी का हार्न । तभी Guard ने बाहर का फाटक खोला और सपत्नीक केशव प्रसादजी का प्रवेश । वही आज सुबह की पूजा के पुरोहित हैं । बरसों से हर जगह बिना नागा किये इसी तरह पहुंचते हैं । कुछ और भी families, friends का आगमन । अगले पंद्रह-बीस मिनटों मे पूजा प्रारंभ । विधि-विधान से वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच पंचामृत स्नान, अभिषेक, नये वस्त्र, आभूषण, श्रंगार, माल्यार्पण, नवग्रह पूजा और समस्त देवी-देवताओं का आव्हान । इधर यजमान पूजन मे व्यस्त तो उधर बाकी महिलाओं ने Kitchen मे कुशलतापूर्वक सुबह के नाश्ते का काम संभाला ।
सामने दीवार पर लगी उस Swiss, Cu-Ckoo clock मे आठ बजने मे कुछ ही मिनिट शेष । समय से पहले ही आ पहुंची, सुबह की रामायण ड्यूटी टीम ने आसन ग्रहण करा । सम्पूर्ण श्रद्धा, आस्था के साथ ठीक 8 बजे रामचरितमानस- *बालकाण्ड* का शुभ प्रारंभ ।
एक निश्चित रफ्तार से आगे बढ़ता रामायण पाठ ।
मध्याह्न के यही कोई 12.30—1.00 p.m का समय । लोगों का लगातार आगमन । बाहर security guard वाहनों को park कराने मे व्यस्त । और इधर अंदर Hall मे शंखनाद और मदॄंग की गूंज के बीच—“भए प्रगट कृपाला दीनदयाला, कौसल्या हितकारी” … के उदघोष से सर्वत्र आनन्द बिखेरता, सुखद और मंगलकारी “रामजन्म” । कुछ ही देर बाद राम-लला के जन्म के सुअवसर पर Cake cutting समारोह । चारों और उल्लास का वातावरण । तत्पश्चात दोपहर की टीम ने रामायण पाठ का कार्यभार संभाला और बाकी लोगों का भोजन के लिए प्रस्थान ।
अगला महत्वपूर्ण पड़ाव शाम पांच बजे । एक अनूठा प्रयोग । रामायण के इस भाग का संचालन युवाओं के हाथ मे । अगले एक घंटे मे संपुट के साथ रामचरितमानस की चौपाइयों का स्वरबद्ध, गायन । बच्चे संपुट लगाते और बड़े पीछे रहकर उन्हे support और follow करते और रामायण का गाकर पाठ करते । रामचरितमानस की अनेकों चौपाई से लिए गए—भावपूर्ण, फलकारी और गूढ़ अर्थों वाले संपुट, जिन्हें लुसाका वासियों ने बरसों की मेहनत से लयबद्ध कर ऐसा कर्णप्रिय बनाया कि उन्हें बार-बार सुन कर भी दिल नही भरता ।
संपुट:
• मंगल भवन अमंगल हारी । द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।।
• सो तुम्ह जानहु अंतरजामी । पुरवहु मोर मनोरथ स्वामी ॥
• असरन सरन बिरदु संभारी । मोहि जनि तजहु भगत हितकारी ॥
• अब मैं कुसल मिटे भय भारे । देखि राम पद कमल तुम्हारे ॥
तुम्ह कृपाल जा पर अनुकूला । ताहि न ब्याप त्रिबिध भव सूला ॥
करीब 6.30 P.M बजे उस संगीतमय गायन की समाप्ति । आगन्तुकों ने शाम की चाय बिस्किट का आनन्द लिया ।
रामचरितमानस का पाठ पूर्ववत जारी । एक टीम आती तो एक जाती । हर दो घंटे मे शिफ्ट मे बदलाव । चाय पानी का लगातार दौर जारी । रामायण पढ़ने वालों के लिए रात्री भोजन की भी व्यवस्था । लोगों का आवागमन लगातार जारी । किसी घर से ताज़ा फूल और माला आ रहे, तो कहीं से फल और प्रसाद । किसी भी आवश्यकता के लिए नज़दीकी मित्र और परिवार लगातार आसपास बने हुए । किसी उत्सव जैसा माहौल । अंदर किसी कमरे मे कुछ छोटे लड़के Video- games मे मगन । किसी दूसरे कमरे मे कुछ छोटी लड़कियों का make-up चल रहा, और बाहर Car-Park मे youngsters की गपशप वाली महफिल जारी । Coke/Fanta/Sprite आदि सहित आनन्द-विनोद का सारा साजो-सामान उनका पास मौजूद । दरअसल युवाओं की ये टीम Stand-by पर है । किसी को drop-pick करना है, या कही से कुछ समान लाना है, सब इन्हीं की ज़िम्मेदारी है ।
घड़ी की सुईयां मध्यरात्रि तक पहुंचीं । शिवप्रकाश शुक्ला जी, केशू भाई, Kafue Desai, गांधी, श्रीमती पी.सी.गुप्ता, अरोलेजी आदि की रात्रिकालीन टीम का आगमन । ये एक expert team है । रामचरितमानस को रफ्तार से पढ़ने मे इन्हे महारथ हासिल है । दिन मे जहां-जहां भी singing के दौरान, रामायण slow हुई है, वो ये सब रात्रि मे कवर करते हैं । अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप ही इस टीम ने रात्री मे पड़ने वाली आरतीयों समेत, अगले पांच घंटों मे तीन महत्वपूर्ण अध्याय — अरण्यकाण्ड, किष्किंधाकाण्ड, और सुन्दरकाण्ड सुबह के पांच बजे से पहले कवर कर डाले ।
इधर रविवार प्रात: के पांच बजे और Dr S.M Shukla, Smt Mani Prabha Shukla, Mukesh Jain, Vijayvarghee, Kushal Parekh, Shashi Parekh आदि की टीम ने रामायण-Hall मे पहुँच कर रात्री टीम को relieve करा । आंधी, अंधड़, बारिश, तूफान,- — मौसम अनुकूल हो या प्रतिकूल, — — रामायण-स्थल पास हो या दूर,– रामायण के प्रति इन सभी लोगों की अटूट प्रतिबद्धता । हर हाल मे ये सब निर्धारित समय पर पहुंच ही जाते हैं ।
निर्बाध रूप से चलती रामायण सुबह 8.00 बजे एक बहुत ही महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंची ।
“प्रथम तिलक बसिष्ट मुनि कीन्हा । पुनि सब बिप्रन्ह आयसु दीन्हा ॥
सुत बिलोकि हरषीं महतारी । बार बार आरती उतारी” ॥
घंटियों की गूंज और शंखों की नाद के बीच श्रीराम के *“राज्यभिषेक”* की शुभ घड़ी का अवसर । रघुकुल शिरोमणी और अयोध्या के महाराज श्रीराम को उनका प्रिय राजभोग अर्पित कर सभी ने उत्साह से एक-एक कर भगवान राम का केसर-चंदन से तिलक करा । हर्षोल्लास से Hall मे उपस्थित समूह ने पुष्प-वर्षा की । राज्याभिषेक के पश्चात उपस्थित जनों का elaborate breakfast, जिसमे है… मुंह मे घुलने वाली खस्ता मठरी, ढोकला-सेव, सांभर-इडली, चटनी के साथ भजिये और साथ मे अदरक-इलायची वाली गर्मा-गर्म चाय ।
लगभग आधे से भी अधिक उत्तरकाण्ड पूर्ण कर, रामायण पाठ अब तेज़ी से समाप्ति की और अग्रसर।
Car-Park मे कारों का लगातार आना जारी । ढोलक लेकर प्रवेश करते हुए Ishwar bhai, उनके साथ, धनताल हाथों मे लिए अरविन्दा बेन । आगे-आगे केशव प्रसाद जी, साथ मे भरत भाई प्रेमजी, और जया बेन । ठीक उसी समय अंबू भाई और कला बेन भी पहुंचे, Guard ने उनका Harmonium, hall तक पहुंचाने मे मदद करी ।
घड़ी की सुईयां 12 को छूती हुई ।
“जो चेतन कहँ जड़ करइ जड़हि करइ चैतन्य ।*
*अस समर्थ रघुनायकहि भजहिं जीव ते धन्य” ॥
खचाखच भरा हाल । नीचे carpet पर रामजी के दरबार के सामने बैठी युवाओं की एक टीम, उसके इर्द-गिर्द रामायण पाठ पढ़ने वालों का घेरा और उस घेरे के बाहर वाद्य उपकरण वालों का एक और घेरा । जिन्हे जगह नही मिली, वे कार-पार्क मे ही रामचरितमानस का श्रवण कर रहे । अंदर-बाहर सब मिलाकर कोई 200-250 लोगों की उपस्थिति । रामायण पाठ का अंतिम चरण ।
दूर तक सुनाई देती ढोलक, ताल, और मंजीरे की गूंज । कानों मे शहद घोलतीं, दिल को छूनें वाली मनोहर चौपाइयां ।
“गंगाधराय शिव गंगाधराय, हर हर भोले नमः शिवाय” —इस संपुट की सुर और ताल मे ऐसी गूंज, मानो सीधे कैलाश पर्वत से टकराकर लौट रही हो ।
आलौकिक वातावरण मे वाद्ययंत्रों का ऐसा मधुर संगीत की आदमी अपने तन मन की सुध खो बैठे । आसमान से मानो अमृत बरस रहा हो । और बरसे भी क्यों ना !! ..तुलसीदासजी स्वयं लिख गये:
“गावत बेद पुरान अष्टदस ।
छओं शास्त्र सब ग्रंथन को रस” ॥
मुनिजन कहते नहीं थकते कि चारों वेद, अठारह पुराण और सारे शास्त्रों का रस रामायण मे समाया हुआ है ।
एक घंटे तक उस Hall मे राम की ऐसी धारा चली की सभी मंत्रमुग्ध होकर उसमे बह गये । स्वामी कृष्णानन्द सरस्वती ठीक ही कहते थे— भजन तो मारिशस के, लेकिन रामायण तो लुसाका की ही अनोखी है ।
मन को हर्षित करने वाली, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के विशाल चरित्र, गुण और कीर्ति की वो अद्भुत कथा, उत्तरकाण्ड के इस अंतिम श्लोक पर समाप्त हुई ।
“पुण्यं पापहरं सदा शिवकरं विज्ञानभक्तिप्रदं।
मायामोहमलापहं सुविमलं प्रेमाम्बुपूरं शुभम् ।
श्रीमद्रामचरित्रमानसमिदं भक्त्यावगाहन्ति ये
ते संसारपतंगघोरकिरणैर्दह्यन्ति नो मानवाः”॥
कलियुग के समस्त पापों का नाश करने वाले श्री रामचरित मानस का यह सातवाँ सोपान समाप्त हुआ।
मंगल थाल
“माता कौशल्याना बाल, पिता दशरथना कुमार, शाणी सीताना भरथार,
जमवा पधारो मारे आँगणे…हो मारे आँगणे” !!
रामायण पाठ समाप्ति पर आदरणीय कुसुम बेन के नेतृत्व मे महिलाऐं, प्रेम, और अनुनय से पूर्ण, मंगल थाल गा कर भगवान श्रीराम और उनके परिवार को भोजन के लिए आमंत्रित करती हैं।
ना सिर्फ ये महिलाऐं भगवान श्रीराम से भोजन के लिए आग्रह कर रही हैं बल्कि अनेकोनेक व्यंजनों के नाम ले-ले कर उन्हें लुभा रही हैं— खीर, पूड़ी, जलेबी, घेवर, केसरिया भात, दाल और ताज़ी मज़ेदार शाक ।
(मंगल थाल की लिंक आर्टिकल के अन्त मे)
मंगल थाल गान के पश्चात सदैव मंगल करने वाली श्री रामायणजी की आदर भाव से आरती ।
और इस तरह अविरल 29 घंटे तक चलने वाला अखंड रामायण का महायज्ञ, सभी के सहयोग से सम्पन्न हुआ । उपस्थित देवी-सज्जनों ने महाप्रसाद (भोज) के लिए प्रस्थान किया ।
नीचे प्रांगण मे प्रीतिभोज की व्यवस्था । दो बड़ी-बड़ी टेबलों पर दूर तक खुशबू बिखेरते, तरह तरह के व्यंजन और मिष्ठान । उन टेबलों पर तैनात युवाओं की एक बड़ी टीम…. सोना, अन्नू, प्रीती, ज्योत्सना, दीप्ति, कपिल, शगुन, बंटी, मन्जू, बंदू..धम्मो आदि ।
नमस्ते अंकल,… नमस्ते आंटी… के अभिवादनों के साथ मुस्कुराहट बिखेरती youngsters की उस फौज ने थोड़ी ही देर मे, मुस्तैदी से भोजन serve कर के सभी को आनन्दित कर दिया ।
भोजन उपरांत सभी आगंतुकों की धीरे-धीरे बिदाई । सब कुछ निपटते निपटते शाम के चार साढ़े चार बज गये । तीन दिन की अथक मेहनत के बाद इन youngsters का कुछ celebration तो बनता ही है । तो सभी youngsters एक खुली Van मे पहले एक लंबी ride, और उसके बाद Ice-cream के लिए कूच कर गये ।
दिलचस्प तथ्य:
• 29 घंटे की रामायण मे time management बहुत महत्वपूर्ण है । रामायण का सम्पूर्ण प्रोग्रामर पहले से Chart-out होता है । कब, कहां, कितने बजे, कौन सा पड़ाव है ! —कितनी आरती हैं—आरती किस समय पर आती हैं ! सब कुछ पूर्व निर्धारित होता है, और इसकी laminated copies रामायण-स्थल पर लगी होती हैं ।
• सामान्यतः तो ऐसा होता नहीं, लेकिन अगर किसी महीने मे रामायण की बुकिंग नही हो तो, तो HST के Trustees अपने घर रामायण रख कर महीने मे कम से कम एक रामायण की-श्रृंखला को बरकरार रखते हैं ।
• इस रामायण मे कोई भी official पंडित नहीं है । सामान्य तौर पर केशव प्रसाद जी, और अगर वे उपलब्ध ना हों तो डा० शुक्ला, डा० शिव प्रकाश, या अरोराजी मे से कोई भी एक पूजा करा सकता है ।
• लुसाका रामायण की कोई मंडली नहीं है, नाही किसी को कोई monetary gain/compensation है । Indian Diaspora के professionals– Doctors, Engineers, Chartered Accountants, Bank Mangers, businessmen, और बाकी सभी लोग Volunteer basis, पर इसमे participate करते हैं, ड्यूटी लगवाते है और हर संभव तरीके से सहयोग करते हैं ।
• Indian Diaspora की महिलाऐं रसायन मे बहुत ही दक्ष हैं । प्रसाद से लेकर मिठाई, नमकीन, और भोजन तक, सब कुछ Home-made है ।
• मंदिर, और मंदिर का साजो-सामान, भगवान की मूर्तियां, स्टील की थाली, कटोरे, चम्मच, ग्लास कुर्सी सब HST की property हैं । बिना किसी शुल्क के, ये सभी भारतीयों को पूजा-पाठ के लिए हमेशा उपलब्ध हैं । आमतौर पर लोग इन्हे रामायण से एक दो दिन पहले लाते हैं और रामायण समाप्ति के पश्चात सुरक्षित warehouse पहुंचा देते हैं ।
• HST के चेयरमैन प्रसादजी रामायण के साथ-साथ Tuesday को बच्चों का भजन, जन्माष्टमी, शिवरात्री, नवरात्री के भजन, जगराता, आदि धार्मिक कार्यक्रमों को coordinate करते थे । लोगों को उत्साहित करने के लिए वो कहा करते थे– आपको तो सिर्फ रामायण रखने का संकल्प करना है !! असल काम तो उसका है, जिसकी पूजा होनी है । चूँकि पूजा श्रीराम की है तो ये उनकी जिम्मेवारी है कि पाठ निर्विघ्न हो और व्यवस्था सुचारू रूप से चले ।
“नेत्रदान महादान”—
“To restore someone’s sight is the most satisfying joy of an eye surgeon”….
इधर प्रसादजी धार्मिक कार्यक्रमों के प्रति कटिबद्ध थे, तो उधर Eye specialist Dr S.M.Shukla सा० मेडिकल और सोशल प्रोजेक्ट्स मे प्रतिबद्ध थे । दूर-दराज के छोटे इलाकों मे महीने मे एक निशुल्क नेत्र शिविर और फ्री cataract surgery से सैकड़ों लोग लाभान्वित हुए । लुसाका मे रामायण पर अन्तर्राष्ट्रीय कान्फ्रेंस आयोजित करने मे भी डा शुक्ला सा० की बहुत अहम भूमिका रही ।
• सौम्य स्वभाव के भरत भाई प्रेमजी, जया बेन, और शिव प्रकाश जी ने अपनी सारी उर्जा HST के स्कूल मे लगा रखी थी, जहां सैकड़ों बच्चे निशुल्क शिक्षा प्राप्त करते थे ।
• हमारे एक पारिवारिक मित्र कुशलचंद्रजी पारिख बहुत बड़े सत्संगी थे और साथ ही hospices का काम भी देखते थे । पारिख सा० कहा करते थे कि, जिनके कर्म बहुत अच्छे होते हैं, उन्हें ही Lusaka जाने का अवसर मिलता है । शायद वो ठीक ही थे, जहां सत्संग की निर्मल गंगा बह रही हो और बच्चों की संस्कारों पर आधारित परवरिश का वातावरण हो, वो सब तो बड़े भाग्य से ही मिलता है
।
To Sum Up :
The list of their names and the amazing memories attached to them is too long to mention here, but I am truly blessed to have met some wonderful people in Lusaka who have positively impacted my life. The quality time we spent together will be cherished for years to come. May God bless them all.
“गिरिजा संत समागम सम न लाभ कछु आन ।
बिनु हरि कृपा न होइ सो गावहिं बेद पुरान” ॥
( पार्वतीजी को रामायण सुनाते हुए शिवजी ने कहा… “हे गिरिजा …..इस संसार मे भले व्यक्तियों का साथ मिलने जैसा उत्तम और कोई लाभ नहीं है । और अच्छे व्यक्तियों का साथ ईश्वर की कृपा से ही मिलता है, ऐसा वेद पुराण कहते हैं” ) ।
“सियावर रामचन्द्र की जय”
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Back ground का Google हिन्दी अनुवाद
लुसाका रामायण
पृष्ठभूमि
मैंने 12 साल से ज़्यादा समय तक वहाँ रहने के बाद 2004 में जाम्बिया छोड़ दिया।
70 के दशक में, जाम्बिया (अफ़्रीका) की राजधानी, लुसाका के खूबसूरत शहर में, लगभग 4-5 प्रवासी परिवारों ने नियमित रूप से अपने घरों में श्री रामचरित्र मानस का पाठ करना शुरू किया।
बाद में, राजस्थान, भारत के परम पूज्य कृष्णानंद सरस्वती, जिनकी कर्मभूमि अफ़्रीका थी, लुसाका आए। स्वामीजी ने सभी पेशेवरों – प्रवासी, स्थानीय लोगों, व्यापारियों और अन्य लोगों से मुलाकात की। अपेक्षित मंच मिलने पर, उन्होंने एक धर्मार्थ संगठन, Human Service Trust, (एचएसटी) की नींव रखी, जिस पर HST की स्थापना हुई। एचएसटी को तीन स्तंभों सेवा, सत्संग और संगठन से शक्ति मिलती है। एचएसटी की स्थापना के साथ ही औपचारिक सत्संग सत्र, नेत्र शिविर, आश्रम, वंचितों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान करने वाले विद्यालयों का निर्माण और गरीबों के लिए कई अन्य परियोजनाओं की शुरुआत हुई। इसके बाद एचएसटी के तत्वावधान में रामायण पाठ आयोजित किए गए।
आम तौर पर किसी के निवास/मंदिर में सप्ताहांत पर आयोजित होने वाली, महीने में एक बार कम से कम एक रामायण होती थी। अखंड पाठ आम तौर पर शनिवार की सुबह 8 बजे शुरू होता था, और बिना रुके, 29 घंटे समर्पित पाठ के बाद, यह रविवार को दोपहर 1.00 बजे समाप्त होता था।
रामायण के 108 पाठ एक माला बनाते हैं, और फरवरी 2004 तक, 6वीं माला चल रही थी।
दीक्षित जी
एम.सी. दीक्षित जी का उल्लेख किए बिना लुसाका रामायण का इतिहास लिखना अकल्पनीय होगा।
मैं उनसे 90 के दशक के अंत में एक बार संक्षिप्त रूप से मिला था, जब उन्हें लुसाका में अखंड रामायण की 5वीं माला के पूरा होने के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था। वे तब काफी बुजुर्ग थे और दिल्ली में बस गए थे। दीक्षित जी के बारे में अधिकांश जानकारी लुसाका में रहने वाले उनके समकालीनों से मिली थी।
दीक्षित जी जाम्बिया में प्रतिनियुक्ति पर आए थे और संभवतः लुसाका हवाई अड्डे पर निदेशक के रूप में कार्यरत थे। कुछ 4-5 परिवारों के साथ, उन्होंने लुसाका में स्वामी जी की पहली यात्रा से बहुत पहले रामायण का पाठ शुरू कर दिया था। वे हृदय से रामभक्त थे। लुसाका आने से पहले और उससे भी पहले, दीक्षित जी एयर इंडिया में प्रथम अधिकारी के रूप में कार्यरत थे। अपनी धार्मिक पत्नी के विपरीत, उनका कोई खास धार्मिक झुकाव नहीं था।
1955 में, कश्मीर प्रिंसेस फ्लाइट 300 उड़ाते समय, एयर इंडिया के विमान में हवा में विस्फोट हो गया। विमान में सवार सभी यात्री मारे गए। चालक दल के सदस्य भी समुद्र में मारे गए। इस दुखद दुर्घटना के समय, भारत में उनके निवास पर अखंड-रामायण सत्र चल रहा था। जब समुद्र में श्री दीक्षित जी के दुर्घटनाग्रस्त होने और लापता होने की खबर श्रीमती दीक्षित को दी गई, तो उन्होंने रामायण पाठ छोड़ने से इनकार कर दिया।
श्री दीक्षित 3 दिनों तक समुद्र में तैरते रहे। वह और दो अन्य लोग उस दुर्घटना में जीवित बचे थे। उन्हें इंडोनेशियाई जलक्षेत्र में कुछ मछुआरों ने देखा और बाद में नौसेना के एक जहाज द्वारा उन्हें घायल अवस्था में बेहोशी की हालत में बचाया गया।
इस दुर्घटना ने उन्हें पूरी तरह से बदल दिया और लगभग नास्तिक से वे भगवान राम के एक उत्साही भक्त बन गए।
श्री दीक्षित लुसाका रामायण के प्रणेता थे, जो 50 से अधिक वर्षों से फल-फूल रहा है। उनकी कहानी जीवन के सबसे बुरे समय में प्रेरणा और आशा का स्रोत है। वे रामायण के प्रति शुद्ध भक्ति और समर्पण के प्रतीक हैं, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए भक्तों के दिलों में हमेशा अंकित रहेगा।
(इस लेख के अंत में उस मध्य-हवाई दुर्घटना के लिंक की एक प्रति दी गई है)।
अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन
वर्ष 1999 में, ह्यूमन सर्विस ट्रस्ट ने लुसाका में रामायण पर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया। प्रतिभागी जाम्बिया, फ्रांस, भारत और मॉरीशस से थे।
सम्मान/अभिनन्दन
रामायण और अन्य एचएसटी गतिविधियों ने समाज में सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक एकीकरण के लिए एक मंच प्रदान किया। इसने न केवल भारतीय समुदाय को मजबूत किया, बल्कि युवा पीढ़ी के मूल्य-आधारित पालन-पोषण और समग्र विकास पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ा। इन युवाओं ने, चाहे लुसाका में हों या विदेश में, अपने जीवन में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया।
यह लेख उन लोगों के उत्कृष्ट योगदान को समर्पित है जिनके नाम लेख में उल्लिखित हैं और साथ ही उन अनगिनत लोगों के लिए भी जिन्होंने बहुत बड़ा योगदान दिया है। रामायण और अन्य सभी एचएसटी परियोजनाओं के प्रति उनकी भक्ति, समर्पण और अटूट प्रतिबद्धता को लुसाका रामायण इतिहास के
आने वाले समय में संजोया जाएगा।
जय श्री राम
आमंत्रण
शनिवार 25 जुलाई 1992 को सुबह 8 बजे, 4- टील कोर्ट, चर्च रोड, लुसाका में शुरू होने वाले अखंड रामायण पाठ के लिए सभी को सादर आमंत्रित किया जाता है।