
विशेष संपादकीय -शैलेश तिवारी
शिवरात्रि पर क्या श्रेष्ठ करें…
क्या ब्रह्मा , विष्णु और शिव परमात्मा नहीं है…. ? या इनका जो संचालन कर रहा है…. वह परमात्मा है.. परम पिता है…. परब्रह्म है….? विचारों की लहरें लगातार थपेड़े मार रही थी…. लेकिन कोई सिरा पकड़ में नहीं आ रहा … ब्रह्मा का कार्य सृष्टि का निर्माण करना है….. विष्णु का कार्य सृष्टि का विस्तार और पालन पोषण करना है…. और शिव जी का कार्य…. सृष्टि का कल्याण और संहार करने का है….। इन त्रिदेव के अलावा वायु, वर्षा, प्रकाश, आदि आदि के लिए भी अलग अलग देवता हैं…. यानि सब के पास अपने अपने विभाग हैं…. कोई किसी के विभागीय कार्य में दखलंदाजी नहीं करता…. इन सभी के बीच जो समन्वय बनाता है … वही परब्रह्म यानि परमात्मा है….।
ये विचार आते ही राहत तो मिली…. लेकिन जिज्ञासु मन अभी प्रमाण की खोज कर रहा… कि ब्रह्मा , विष्णु, महेश के ऊपर परब्रह्म कौन…. । चिंतन से विचार मंथन शुरू हुआ। मंथन होगा तो नवनीत निकलेगा ही…… फिर याद आया संस्कृत का वह श्लोक जो काफी हद तक… परब्रह्म के नजदीक लगा…
गुर्रब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरु साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवै नमः ।।
इस श्लोक में भी गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश से बढ़कर परब्रह्म के साकार स्वरूप को गुरु में साक्षात मानकर उनको प्रणाम किया है। गिरह खुलने लगी .. तो अंतस प्रफुल्लित हुआ… और खोज की इच्छा हुई…. तो चंचल मन ने बहकाया… हो तो गया परब्रह्म परमात्मा का प्रकटीकरण…. त्रिदेव से ऊपर वाले कि स्थिति स्पष्ट तो हो गई… रहने दे … क्यों माथा पच्ची करता है….। लेकिन गुरुवाणी की यही तो महिमा है…. जो आत्मबल को प्रबल बनाती है … जिसके आगे मन की चंचलता नतमस्तक हो जाती है… उसके दौड़ते विचार अश्व पर लगाम कस जाती है…. यहां भी कसी….।
फिर शुरू हुआ मंथन का एक और दौर… जो ब्रह्मा पर रुका… विष्णु पर अटका…. लेकिन थमा जाकर शिव पर…. वो भी उनकी मूर्ति रूपी साकार और लिंग रूपी निराकार स्वरूप पर… उनकी पूजा विधि भी कुछ अलग… और उसके बाद आरती… अहा.. यही तो परब्रह्म की आरती….
पहली पंक्ति…. एकानन, चतुरानन, पंचानन……
पर गौर किया तो लगा कि यह शिव की नहीं , यह तो त्रिदेव की आरती है…. इसी के नीचे तीनों देव के वाहन…. हंसासन, गरुड़ासन, वृषवाहन का उल्लेख…..। विस्मय बढ़ता जा रहा था कि अगली पंक्ति ने और चोंकाया…. दो भुज, चार चतुर्भुज दसभुज से सोहे…..इसमें भी वही ब्रह्मा , विष्णु महेश के व्यक्तित्व का वर्णन…. श्वेताम्बर, पीताम्बर और बाघम्बर से उन्ही त्रिदेव की वेशभूषा का वर्णन…. फिर उनके साथ रहने वालों का भी उल्लेख नजर आया….. उनके अस्त्र शस्त्र और साथ रहने वाले सामान का ज़िक्र भी आता है…. ।धीरे धीरे लगा कि….यह शिवजी की नहीं तीनों देव की सम्मिलित आरती है….। परंतु नहीं…. ऐसा भी नहीं है …. आखिर में जिन पंक्तियों को आरती में शामिल किया गया है….. वह तो एकदम वेदांत से ओतप्रोत हैं…. ब्रह्मा , विष्णु, सदाशिव जानत अविवेका
प्रणव अक्षर के मध्ये ये तीनों एका……
- ब्रह्मा, विष्णु, महेश सहित देवताओं में भेद करना, उनको अलग अलग समझना…. अविवेकी यानि बुद्धिहीन व्यक्ति की निशानी है… ये त्रिदेव तो प्रणव यानी ॐ अक्षर में समाए हुए एकाकार स्वरूप हैं…. यही वह परम पिता है, परमात्मा हैं …. जिन्हें हम परब्रह्म के नाम से जानते हैं….यही परम शिव या सदाशिव हैं…. जिनका उल्लेख शिव पुराण की विद्येश्वर संहिता में किया जाकर… ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होने की कथा में मिलता है…. और यह वही दिन है जिसे हम महाशिवरात्रि के रूप में मनाते हैं… यानि अव्यक्त ब्रह्म का व्यक्त स्वरूप है… शिव लिंग …. जिसे लकड़ी से , विभिन्न धातुओं से…. अलग अलग पदार्थों से… और सर्वाधिक मिट्टी से .. यानि पार्थिव शिवलिंग के रूप में पूजे जाने की परम्परा है…।
सवाल यह भी उठा कि शिवलिंग को पार्थिव शिवलिंग के रुप में पूजे जाने का ज्यादा महत्व क्यों है? ध्यान में आए पंच महाभूत… जल, वायु, अग्नि, आकाश और पृथ्वी…. फिर इन सभी के अधिष्ठाता देव… क्रमशः गणेश, सूर्य, दुर्गा , विष्णु और शिव…।
पृथ्वी तत्व के अधिष्ठाता देव शिव होने की वजह से … पार्थिव लिंग बनाकर पूजा जाना ही विशेष महत्व का हो जाता है…. यानि महाशिवरात्रि के दिन अगर पार्थिव लिंग बनाकर पूजा की जाए तो इसका फल कई गुना ज्यादा हो जाता है… सुख, समृद्धि और शांति प्रदान करने वाली इस पूजा को महाशिवरात्रि पर अवश्य करना चाहिए… कारण यही कि मनुष्य अपने जीवन में सुख , समृद्धि और शांति की ही तो चाहत रखता है और यह तीनों उद्देश्य पार्थिव शिवलिंग पूजा से पूर्ण होते हैं… इसमें कोई संशय नहीं… जय श्री महाकाल…।
शैलेश तिवारी
“संपादक”
एमपी मीडिया पॉइंट