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होली क्यों मनाई जाती है,होलिका दहन क्यों किया जाता है।

होलिका दहन

होली क्यों मनाई जाती है,होलिका दहन क्यों किया जाता है।

एमपी मीडिया पॉइंट इछावर के लिए राजेश माँझी की खास रिपोर्ट।

होली हिंदूओं का सांस्कृतिक,धार्मिक और पारंपरिक त्योहार है। सनातन धर्म में प्रत्येक मास की पूर्णिमा का बड़ा ही महत्व है और यह किसी न किसी उत्सव के रूप में मनाई जाती है। उत्सव के इसी क्रम में होली, वसंतोत्सव के रूप में फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। यह दिन सतयुग में विष्णु भक्ति का प्रतिफल के रूप में सबसे अधिक महत्वपूर्ण दिनों में से माना जाता है।

भक्त प्रह्लाद से जुडी है कथा
हिन्दू धर्म के अनुसार होलिका दहन मुख्य रूप से भक्त प्रह्लाद की याद में किया जाता है। भक्त प्रह्लाद राक्षस कुल में जन्मे थे परन्तु वे भगवान नारायण के अनन्य भक्त थे। उनके पिता हिरण्यकश्यप को उनकी ईश्वर भक्ति अच्छी नहीं लगती थी इसलिए हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को अनेकों प्रकार के जघन्य कष्ट दिए। उनकी बुआ होलिका जिसको ऐसा वस्त्र वरदान में मिला हुआ था जिसको पहन कर आग में बैठने से उसे आग नहीं जला सकती थी। होलिका भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए वह वस्त्र पहनकर उन्हें गोद में लेकर आग में बैठ गई। भक्त प्रह्लाद की विष्णु भक्ति के फलस्वरूप होलिका जल गई और प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ। शक्ति पर भक्ति की जीत की ख़ुशी में यह पर्व मनाया जाने लगा। साथ में रंगों का पर्व यह सन्देश देता है कि काम, क्रोध,मद,मोह एवं लोभ रुपी दोषों को त्यागकर ईश्वर भक्ति में मन लगाना चाहिए।

राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम से है संबंध
होली का त्योहार राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम से भी जुड़ा हुआ है। पौराणिक समय में श्री कृष्ण और राधा की बरसाने की होली के साथ ही होली के उत्सव की शुरुआत हुई। आज भी बरसाने और नंदगाव की लट्ठमार होली विश्व विख्यात है।

कामदेव की तपस्या
शिवपुराण के अनुसार ,हिमालय की पुत्री पार्वती शिव से विवाह हेतु कठोर तपस्या कर रहीं थीं और शिव भी तपस्या में लीन थे। इंद्र का भी शिव-पार्वती विवाह में स्वार्थ छिपा था कि ताड़कासुर का वध शिव-पार्वती के पुत्र द्वारा होना था। इसी वजह से इंद्र आदि देवताओं ने कामदेव को शिवजी की तपस्या भंग करने भेजा। भगवान शिव की समाधि को भंग करने के लिए कामदेव ने शिव पर अपने ‘पुष्प’ वाण से प्रहार किया था। उस वाण से शिव के मन में प्रेम और काम का संचार होने के कारण उनकी समाधि भंग हो गई।इससे क्रुद्ध होकर शिवजी ने अपना तीसरा नेत्र खोल कामदेव को भस्म कर दिया। शिवजी की तपस्या भंग होने के बाद देवताओं ने शिवजी को पार्वती से विवाह के लिए राज़ी कर लिया। कामदेव की पत्नी रति को अपने पति के पुनर्जीवन का वरदान और शिवजी का पार्वती से विवाह का प्रस्ताव स्वीकार करने की खुशी में देवताओं ने इस दिन को उत्सव की तरह मनाया यह दिन फाल्गुन पूर्णिमा का ही दिन था। इस प्रसंग के आधार पर काम की भावना को प्रतीकात्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।

इतिहासकार राजेश शर्मा के अनुसार इछावर नगर में होलिका दहन

इछावर नगर में होलिका दहन भले ही तिथि एवं मूहूर्त अनुसार हो लेकिन यहां आज भी रंग दूसरे दिन ही खेला जाता है।

पहला होलिका दहन शीजगर मोहल्ले में

करीब 200 साल पहले ,होलिका दहन की शुरुआत इछावर नगर में अनोखे अंदाज में हुई थी इच्छावर के पटेल बुजुर्ग मिश्रीलाल मुकाती बताते हैं कि नागरिकों ने जब पहली बार होलिका दहन करने का निर्णय लिया तो स्थान के चयन को लेकर लोगों के अलग-अलग मत थे इसी वजह से निर्णय लिया गया की मुकाती मोहल्ले स्थित चंपा वाले कुएं से पूर्व दिशा की और दो अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा ही श्रीफल फेके जाएंगे जो नारियल सबसे आगे गिरेगा इस स्थान पर होलिका दहन किया जाए सबसे दूर जाकर नारियल शीजगर मोहल्ले में गिरा था उसी स्थान पर पहली बार नगर में होलिका दहन किया गया। यह स्थान आज भी बड़ी होली के नाम से जाना जाता है। आज नगर के करीब तीन दर्जन स्थानों पर होलिका दहन होता है लेकिन नगर के ज्यादातर घरों की महिलाएं बड़ी होली पर ही पहुंचकर पूजा अर्चना करती है। यहां होलिका दहन की विशेषता यह है कि होली सिर्फ कंडो से जलती है लकड़ी का समावेश नहीं होता कल सुबह से नगर पटेल के हाथों से हवन पूजन के बाद होली को प्रज्वलित किए जाने की परंपरा आज भी कायम है। अन्य एक श्रीफल जिस स्थान पर गिरा था आज वहां खेड़ा पति हनुमान मंदिर है।

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