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हकीकत  बयां हमीदिया अस्पताल के एक चिकित्सक की

स्मरण

फूलबाग
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वेस्टइंडीज से एक डॉक्टर की यात्रा अपनी मातृभूमि पर…

हकीकत  बयां हमीदिया अस्पताल के एक चिकित्सक की♦

प्रसंगवश

डॉ अजय शर्मा , वेस्टइंडीज़

“बेटा तुम वहां ऊपर से आटे को पीपो निकाल लाओ” । “अरे वो फूल-बाग वाली लाड़ी कहां है” ?? उनसे कहो की जल्दी से चूल्हा पे चाय चढ़ा दे, बस थोड़ी देर मे पूजा को टेम हो जाएगो । और छावनी वाली तुम पूजा को लग्गो लगा लो । अरे कोई जाके देखो की ‘बासाब’ के नहाने को इंतजाम हुओ को नी ? पूजा पे बैठनो है उन्हे । पिरकाश और छोरा-होन से को की कुआं से पानी निकाल के रखे ।

कोई 30 -40 साल पहले का ये नज़ारा था मेरे पैत्रक गांव की ‘अष्टमी पूजा’ का है । ‘छावनी वाली’, ‘कस्बे वाली’, “फार्म वाली’, ‘फूलबाग वाली’, ‘सारंगपुर वाली’, वगैरह-वगैरह। परिवार की बुज़ुर्ग महिलाएं प्रेम से लबालब ऐसे ही कुछ सम्बोधनों से बहुओं को बुलाती थीं ।

“फूलबाग वाली”… मेरी मां का नाम था । उनका ताल्लुक फूलबाग-नरसिंहगढ से था । भोपाल से कोई 60 km दूर खूबसूरत पहाड़ों, हरे-भरे पेड़, बहते झरनों, और तलाब के पास बसा नरसिंहगढ शहर । पर्यटन के लिए एक उत्कृष्ट स्थल । आज़ादी के पहले ये एक ‘रियायत’ हुआ करता था । उपर ऊंचे-ऊंचे पहाडों पर महाराज विक्रम सिंह का किला, नीचे ‘दफ्तर’ और शहर बसा हुआ । काफी-सारे पुराने मकान तो अब ढह गये, पर कुछ अभी भी बचे हैं । मेरे नाना ‘महाराज’ के दरबार मे कार्यरत थे । शहर के बीचोंबीच बसे फूलबाग मे उनका मकान था ।

मेरी ताईजी भी इसी शहर से थीं । बचपन से दोनों की मित्रता और रिश्तेदारी, जो आगे भी यथावत रही । मां अक्सर अपना बचपन और इस मकान को याद करती थीं..’बहुत बड़ा मकान था’!! ‘पीछे घना जंगल था’!!! .’कई बार दूर कहीं शेर की दहाड़ सुनाई देती थी” । ‘राजाजी जंगल मे शेर का शिकार करने आते थे”,। ‘हम लोग अक्सर पहाड़ों पर पिकनिक मनाने जाते थे’ । परिवार को फिल्मों का भी शौक था और हो भी क्यों ना ? । मां के फूफाजी हर टाकीज मे मैनेजर जो रहे, । मां और ताईजी जब भी बैठती तो नरसिंहगढ का जिक्र ज़रूर होता । दोनों याद करतीं कि किस तरह सारे शहर मे धूम मच गयी जब 1952 मे दिलीप कुमार की फिल्म ‘आन’ की वहां शूटिंग हुई । और ना जाने कभी ना खत्म होने वाले, ऐसे बहुत से किस्से । कालांतर नानाजी मकान बेचकर राजगढ़ शिफ्ट हो गये । मगर ये मकान और नरसिंहगढ का सुनहरा बचपन, मां के ह्रदय मे हमेशा बसा रहा । दुर्भाग्यवश उनके जीवनकाल मे मैं कभी ये मकान नहीं देख पाया ।

माताजी तो अब नहीं रहीं लेकिन उनके जाने के बाद इस मकान को देखने की इच्छा तीव्र होती चली गयी ।

सन 2023, कोई 40 वर्ष से भी अधिक के बाद लौट रहा हूं इस शहर मे । माताजी के एक दूर के भाई रहते हैं यहां। उनसे रिश्ता तो दूर का है मगर दिल के तार बहुत करीब से जुड़े हुए हैं । मेरे बचपन की कुछ सुनहरी यादें जुड़ी हैं उनके साथ। उनके घर के नजदीक पहुंच, कार को पार्क कर, मेने एक दुकानदार से पता पूछा । कौन ??

‘अच्छा’… ‘वो वकील साहब” !!, और वो सज्जन अपना काम छोड़ मुझे उनके घर तक छोड़कर आये । सालों बाद भी मामाजी बहुत ही आत्मीयता से मिले। बहुत स्नेह है मुझपर उनका । बरसों बाद मेने ‘कंडे-राख’ पे बनी स्वादिष्ट ‘दाल-बाटी’ खाई। प्रेम से तरबतर उस भोजन का स्वाद आगे कई दिनों तक दिल पर छाया रहा । माताजी के एक दूर के चाचाजी भी इसी शहर मे हैं । बहुत वृद्ध हो चले हैं अब, मगर पुरानी यादें अभी भी उनके ज़ेह्न मे ताज़ा हैं । उनकी भी यादों इस घर से जुड़ी हैं । उन्होंने ही इस घर का पता दिया ।

कुछ ही कदमों के फासले पर माँ का घर था । सड़क से देखने पर तो लगा काफी बड़ा है । मैने सकुचाते हुए सांकल खटखटाई । कोई जबाब नहीं !!! ..मेने दोबारा कोशिश की.. फिर एक बार खामोशी । मुझे लगा शायद घर पर कोई नहीं है, पर दिल ने कहा चलने से पहले एक और आखिरी कोशिश … इस बार एक महिला की आवाज आई… ‘आती हूं’…।

गोद मे एक छोटे से बच्चे को लिये एक नवयुवती ने दरवाजा खोला । कुछ पलों के लिये मे असमंजसता मे था । समझ मे नहीं आया कि क्या कहूं ???। कैसे एक महिला से कहूं कि वो एक नितांत अनजान व्यक्ति को अपने घर मे आने दे ??? घर को अन्दर से देखने दे ? ??। खैर अपना परिचय देने के उपरांत बहुत ही शालीनता से मेने उसे अपने आने का आशय बताया… “मेरी स्वर्गीय माताश्री का बचपन यहाँ गुजरा है !!! उनकी स्मृर्ति मुझे यहां लाई है”। उसे और अधिक आश्वस्त करते हुए मेने कहा…“ ये कोई land survey या पिछले मालिकों द्वारा मकान पर दावा जैसा कोई मामला नहीं है” । इस बीच उस महिला के पतिदेव भी वहां आ गये । सफेद धोती-कुर्ता और टोपी पहने एक बुजुर्गवार भी चर्चा मे आ जुड़े । बातचीत आगे बढ़ी तो नानाजी का जिक्र आया…”हां बिलकुल ठीक…खजांची साहब थे” .बुजुर्ग बोल उठे, शायद उन्होंने अपने बढ़े-बूढों से नानाजी के बारे मे सुना होगा ।

आश्चर्यजनक रूप से पति-पत्नी तुरंत तैयार हो गए और प्रेम-पूर्वक मुझे अंदर ले गये । ‘रज़वाड़ों के समय का मकान’ । ‘घर के पिछवाड़े मे एक बहुत बढ़ा कुआं’ । ‘वहीं पास ही कहीं एक हनुमानजी की प्रतिमा’ । ‘दो बढे-बढे कमरे’ । ‘आरपार जाने के एक छोटी खिड़की’ । ‘बाहर एक बहुत बढी दलान और वहीं से ऊपर को जाती सीढियां’ । ‘ऊपर की मंजिल पर किसी ‘हाल’ जैसे बढे-बढे कमरे’ । कमरों के ठीक सामने एक बहुत बढी ‘चान्नी’ । कुल मिलाकर दस से अधिक कमरे ।

यात्रा खत्म होने पर मुझे बैठने को स्थान दिया गया । युगल-जोड़े ने बताया कि उनका परिवार इस मकान का द्वितीय मालिक है और वो वहां 60 से भी अधिक सालों से हैं,। और जहां तक उनकी जानकारी है, शुरू से आज तक इस घर की एक ईंट भी नहीं बदली गयी ।

मेने विदा मांगी, मगर वो दोनों आग्रह-पूर्वक अड़ गये कि आप बिना चाय-पानी के नहीं जाओगे । इस-बीच उन महिला ने अपने ससुर को भी फोन कर दिया और वो बेचारे 15 किलोमीटर दूर ..खेतों पर से काम छोड़कर मोटरसाइकिल पर निकल पड़े । महिला बोली… “ससुरजी भी आप से मिलना चाहते और आते ही होंगे” । कुछ देर मे ससुर भी आ पहुंचे और फिर साथ मे ‘चाय-नाश्ता’ हुआ ।

मैं चलने को हुआ तो पूरे परिवार ने विनयपूर्वक फिर आने का निमंत्रण दिया…”आपका घर है, जब भी चाहो बेहिचक आओ”

आज के इस आधुनिक समय मे,एक छोटे से शहर मे.. ‘सरल’, ‘सौम्य-व्यव्हार’, ‘निष्कपट विचार’, ‘भोलापन’, ‘अतिथि-सम्मान’, ‘प्रेमी-ह्रदय, और बहुत कुछ !!! एक बार तो लगा कि कहीं bag ना छोटा ‌पड़ जाये ?? कछ छूट ना जाये??, सब कुछ अनमोल !!!। मेने जल्दी- जल्दी सारी ‘gifts’ समेटी, bag मे रखी और विदा ली ..

हमेशा की तरह कार मे बैठते ही मैं रेडियो आन कर देता हूं । आज भी वही करा…

“होंठों पे सच्चाई रहती है, जहां दिल मे सफाई रहती है…
.हम उस देश के वासी हैं, जिस देश मे गंगा बहती है “।

वेस्टइंडीज से डॉ अजय शर्मा

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