जवानी की पहली दहलीज़ पर ही मिला गया था बंगाल के टाइगर को फांसी का फंदा
भारत का स्वर्णीम इतिहास जिससे आजादी बनी खास

जवानी की पहली दहलीज़ पर ही मिला गया था बंगाल के टाइगर को फांसी का फंदा
प्रसंगवश
राजेश शर्मा, इछावर (मप्र)
शुरुआत यहां से करते है कि बमकांड के दूसरे दिन सन्देह होने पर प्रफुल्लकुमार चाकी को पुलिस पकडने गयी, तब उन्होंने स्वयं पर गोली चलाकर अपने प्राणार्पण कर दिये।
खुदीराम को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। इस गिरफ्तारी का अन्त निश्चित ही था। 11 अगस्त 1908 को भगवद्गीता हाथ में लेकर खुदीराम धैर्य के साथ खुशी-खुशी फाँसी चढ़ गये। किंग्जफोर्ड ने घबराकर नौकरी छोड दी और जिन क्रान्तिकारियों को उसने कष्ट दिया था उनके भय से उसकी शीघ्र ही मौत भी हो गयी।
फाँसी के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गये कि बंगाल के जुलाहे एक खास किस्म की धोती बुनने लगे। इतिहासवेत्ता शिरोल के अनुसार बंगाल के राष्ट्रवादियों के लिये वह वीर शहीद और अनुकरणीय हो गया। विद्यार्थियों तथा अन्य लोगों ने शोक मनाया। कई दिन तक स्कूल कालेज सभी बन्द रहे और नौजवान ऐसी धोती पहनने लगे, जिनकी किनारी पर खुदीराम लिखा होता था।
जवानी की पहली दहलीज पर जिसे पड़ा हुआ फांसी का फंदा बना लिया, उसने प्रेम से उठाया,आलिंगन किया फिर चूम लिया…., तीसरी बार बोले वन्दे मातरम् और चौथी बार भागवत् गीता को सर-आंखों पर उठाया और पांचवीं फांसी के तख्ते पर खुशी-खुशी झूल गए।
वह शख्स कौन हो सकता था ? बजाए सिर्फ अमर शहीद नौजवान खुदीराम बोस के। जिसे बाद मौत के “बंगाल का टाइगर” कहा जाता है।
वैसे तो भारत भूमि पर मर मिटने वाले अमर शहीदों की फ़हरिस्त बढ़ी लम्बी है लेकिन उस लिस्ट में खुदीराम बोस का नाम उच्च स्थान रखता है।
क्योंकि उन्होंने बेहद अल्पायू 19 वर्ष से भी कम आयु में वीरगति प्राप्त और सर्वशक्तिशाल बम का इस्तेमाल किया जिसकी आवाज़ तीन मील दूर तक सुनाइ दी थी।
साहसी खुदीराम बोस और उनके साथ दोस्त प्रफुल्ल कुमार चाकी ने अंग्रेज शासक जार्ज मिस्टर किंग्स फोर्ड को 30 अप्रैल 1909 को मौत के घाट ऊतार ने का प्रयास किया था लेकिन निशाना चूक गया जो आगे भी चूकता रहा ….लेकिन बोस का फैंका एक बम इतिहास बन जो सीधे जार्ज कैनेडी के नजदीक गिरा जिसमे वह घायल हो गए लेकिन बोस के इस हमले मे कैनेडी की बेटी की मौके पर ही मौत हो गई।
बोस के खिलाफ मुकदमा चला और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। भारत का यह अविस्मरणीय, अमर नौजव़ान भागवत् गीता कि साथ रख “वंदे मातरम् के उदघोषों के साथ खुशी-खुशी फांसी के फंदे पर लटक गया।
कुछ इतिहासकारों के मतानुसार खुदीराम बोस के शव की राख का दाह संस्कार स्थल पर एक कण भी नहीं बचा था। राख को थैली-झोलों में भरकर लोग घर लिए गए थे।
कुछ लगों ने राख को भभूत मानकर,कुछ लोगों वीरता की औषधि मानकर पूजा घर मे रखते हुए पूरे विधि-विधान Siva सेवन-पूजन किया।
इसके पीछे का कारण यह भी बताया जाता है कि ” अब जब-जब भी कोई शिशु बंगाल की मिट्टी पर जन्म ले तो खुदीराम जैसा ही बच्चा पैदा हो।
एमपी मीडिया पाइंट की टीम और 23 लाख 30 हजार पाठकों की ओर से हम बंगाल के टाइगर,अमर शहीद खुदीराम बोस की शहादत जो सौ-सौ सलाम करते है। और दहाड़ मारकर कहते है।
वंदे मातरम्……