
फौजमार कप्तान की दास्तान बना पटवारी का बयान
त्वरित : राजेश शर्मा
सबसे पहले बात करें प्रदेश के मुख्यमंत्री की….
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा लाड़ली बहनों को शराबी बताना बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण है।हरतालिका तीज के पावन पर्व के दिन बहनों का यह अपमान हमारी सरकार और पार्टी बर्दाश्त नहीं करेगी। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष को माफी मांगनी चाहिए और मध्यप्रदेश की बहनों को अपमानित करने वाले को पद से हटाना चाहिए।उक्त वक्तव्य मप्र के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने जारी किया है।
उन्होंने कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी के शराब के संदर्भ में महिलाओं को लेकर कही गई बात को गंभीरता से लिया है।
यह सही भी है क्योंकि गैर जिम्मेदाराना और हल्कट किस्म की बातें जब मुंह से निकलने लगे तो उस नेता को हताशा के दौर से गुजर रही कांग्रेस पार्टी के लिए फ़ौजमार कप्तान नहीं तो क्या कहा जा सकता है!
जीतू पटवारी भूल गए कि वैसे भी शराब और महिलाओं में ३६ का आंकड़ा है। शराब माफियाओं का वास्तविक पालना (झूला) तो कांग्रेस पार्टी ही है। अंग्रेज जाते-जाते हमारे चारों वेद ले गए और बदले में सुबह की खाली पेट चाय और रात का शराब से भरा प्याला छोड़ गए। पटवारी जी को तो यह आंकड़ा भी नहीं मालूम कि देश में सबसे ज्यादा शराब का उपभोग किस प्रांत में किया जाता है। आजू-बाजू चमचों से घिरे पटवारी साहब गलत जरीब फैंकने से पहले गूगल से ही पूछ लेते…
तो पता चलता कि आंकड़ों के अनुसार, भारत में सबसे ज्यादा शराब गोवा में पी जाती है। इस के बाद इस लिस्ट में अरुणाचल प्रदेश, तेलंगना, झारखंड, सिक्किम, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश, पंजाब, असम, केरल और बंगाल हैं। मध्यप्रदेश का नम्बर 14वां है। इस प्रदेश में एक हजार महिलाओं में से मात्र एक दर्जन महिलाएं ही शराब का उपभोग करती हैं। वो भी उम्र दराज़।
अब शराब के सेवन में महिलाएं कहां से अव्वल हुईं? हर पांच वर्ष में भारत भर के आंकड़े जारी होते हैं। और पिछले एक दशक की बात की जाए तो शराब सेवन के मामले में महिलाओं के आंकड़ों का ग्राफ कम ही हुआ है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की सबसे ताजा रिपोर्ट 2019-21 के बीच हुए सर्वेक्षण का ब्योरा मुहैया कराती है, उसके मुताबिक भारत में 15 साल से ज्यादा उम्र के 19 फीसदी पुरुष और महज 1.2 फीसदी महिलाएं ही शराब का उपभोग करती हैं। जिन राज्यों में महिलाएं सबसे ज्यादा शराब पीती हैं, उनमें अरुणाचल प्रदेश पहले स्थान पर है। इसके बाद सिक्किम का स्थान है।
कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष पटवारी ने प्रेस कांफ्रेंस में जिन महारथियों को न्यौता भेजा था उनकी तरकश में भी नुकीले तीरों की कमी थी। वरना वहीं स्पाट पर आंकड़ा ६३ का हो सकता था।
डॉ मोहन यादव के साथ भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल एवं भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी को यह कहने की जरुरत ही नहीं पड़ती कि पटवारी का यह बयान मध्यप्रदेश की महिलाओं का अपमान है, बल्कि कांग्रेस की महिला विरोधी कुत्सित मानसिकता का एक अशोभनीय उदाहरण भी है।
टेबल पर रखे फुलतुर्रुओं के बीच पटवारी भाजपा प्रदेश सरकार के नीतियों की पोल खोलते समय अनाड़ी,अपरिपक्व,अनुभवहीन,अदने से नेता दिखाई दे रहे थे। गुणहीन प्रादेशिक नेता होने का खुद अफ़साना लिख रहे थे। नशा,बेरोजगारी, कुपोषण की बीमारी तो राज्य को कई दशकों से लगी है। दौरान-ए-दौर कांग्रेस का भी रहा है। उसका जवाब किसके पास है?
महिलाओं को शराब से जोड़ने की बात के पहले जुबां पर एक काली मिर्च रख ली होती या मां काली का स्मरण कर लिया होता तो लाड़ली बहना के हितेशी महानेता की जुबां फिसलने से पहले संभलने के लिए मां सरस्वती की गोद में समा जाती।
रही बात भाजपा प्रदेश सरकार की तो वो बात का बतंगड़ बनाने से नहीं चूक रही। पहले तो सरकार को इस बात का खुलासा करना चाहिए कि करोड़ों-अरबों रुपये फूंक कर मध्यप्रदेश में पिछले माह चलाए गए “नशा मुक्ति जन जाग्रति अभियान” से क्या खोया, क्या पाया ? नशे के मामले में सोच को लेकर हम आज भी नशे में हैं। महिलाओं के हितार्थ और पटवारी के खिलाफ प्रदेश शासन की मंत्री श्रीमती कृष्णा गौर एक महिला होने के नाते सोशल मीडिया पर बयान जारी करते हुए सोनिया गांधी एवं प्रियंका से जो कुछ कह रही है वह…ठीक है, लेकिन उन्हें यह सोचना भी चाहिए कि वह भाजपा में “महिला विभाग” की मंत्री नहीं हैं। प्रदेश में शराब बंदी की बात पर चुप्पी क्यों साधी जा रही है। बयानों की इस जंग में शराब को लेकर यह बात क्यों कोई नेता नहीं बोलता कि “ना रहेगा बांस और ना बजेगी बांसुरी” अरे नशीले पदार्थ खत्म तो नशे को तो खत्म होना ही है।
फुलतुर्रुओं के सामने आकर बयानबाजी के इस नए दौर में नेता अपनी ज़मीनी पकड़ खोते जा रहे हैं। फालतू की बयांबाजी के बजाए धरातल से जुड़कर यदि कांग्रेस विपक्ष की भूमिका अदा करे और अपनी ही पार्टी को गर्त में ले जाने वालों की जुबां पर लगाम कसे तो मैदानी कांग्रेस कार्यकर्ताओं को अब भी हताशा की स्थिति से उभारा जा सकता है। और अंत में लाख टके की बात यह भी है कि शास्त्र गवाह हैं कि महिलाओं के प्रति अपमानजनक शब्द या उनकी आड़ में राजपाठ हथियाने की “नीति” भविष्य के लिए बेहद कष्टदायक होती आई है। जुबां पे लगा घाव सबसे पहले ठीक होता है लेकिन जुबां से दिया घाव लम्बे समय तक दुखदायी बना रहता है।