सीहोर : ईश्वर प्रकाश स्वरूप है,उसका विधान सर्वत्र समान लागू रहता है- आचार्य विष्णुमित्र वेदार्थी
धर्म

ईश्वर प्रकाश स्वरूप है,उसका विधान सर्वत्र समान लागू रहता है- आचार्य विष्णुमित्र वेदार्थी।
पी.जी कालेज व जिला जेल में आचार्य वेदार्थी के व्याखान से छात्रों,कैदियों को मिली सद प्रेरणा
सीहोर,22अगस्त 2025
एमपी मीडिया पॉइंट
जिन कर्मों को करने से आत्मा,शरीर,समाज राष्ट्र व जगत की उन्नति होती है,वह संस्कृति कहे जाते हैं।क्रत कर्मों के फल कभी निष्फल नहीं होते हैं,उचित समयपर विपाक होकर वह फलीभूत होते हैं।परमात्मा प्रकाशस्वरुप है,विश्व के सर्वेश्वर का एक संविधान है।जो असीम जगत में समान रुप सदा लागू रहता है। यह उदगार शुक्रवार सुबह महर्षि दयानंद मार्ग गंज, स्थित आर्य समाज मंदिर में वेद प्रचार सप्ताह के दौरान बिजनौर यू.पी से पधारे वैदिक विद्वान आचार्य विष्णुमित्र वेदार्थी ने व्यक्त किए।
आचार्य वेदार्थी ने कहा कि आत्मा शरीर के भीतर है जबकि ईश्वर सर्वत्र असीम ब्रह्मांड में व्याप्त है,उसका साक्षात्कार ह्दय प्रदेश में ही होता है,उसे बाहर तलाश करना अज्ञानता है।आचार्य ने कहा कि जिन पुस्तकों को पढ़ने से विचार प्रवाह बाहर की ओर हो,वह अध्ययन है और जिन पुस्तकों को पढ़ने से विचार प्रवाह भीतर की ओर हो,वह स्वाध्याय है।जिसकी सामर्थ्य, नियम से सूर्य प्रकाशित होता है,नदियों का जल बहता है,वायु प्रवाहित होती है,वह परमात्मा है।
इसके पूर्व भजनोपदेशक प. भीष्म आर्य के गीतों एवं भजनों की सुमधुर संगीतमयी प्रस्तुतियों का श्रोताओं ने आनंद विभोर होकर रसास्वादन किया।
संचालन समाज के प्रधान नरेश आर्य ने किया एवं आभार रमेश राठौर ने व्यक्त किया।कार्यक्रम म़े मुख्य रुप से वैदिक प्रवक्ता संतोष सिंह,उपप्रधान तरूण जगवानी,नरेन्द्र राठौर,माधोसिंह गौर,आर.एस गौर,मंत्री रितेश आर्य बाबूलाल आर्य,राजेन्द्र राठौर,संजीव आर्य,रामदीन आर्य राजकुमार राठौर,हेमराज प्रजापति सहित बड़ी संख्या म़े आर्यजन,श्रद्धालु,महिलाएं शामिल रहे।शांतिपाठ व जयघोष से कार्यक्रम का समापन हुआ।
गुरूवार दोपहर शहीद चंद्रशेखर आजाद महाविद्यालय में आचार्य वेदार्थी ने अपने व्याख्यान में छात्रशक्ति की सामर्थ्य से समाज निर्माण की भूमिका को अनेक द्रष्टांतों से आव्हान किया। छात्रों ने करतल ध्वनियों से आचार्य का उत्साह वर्धन किया।वहीं शुक्रवार दोपहर जिला उपजेल में आचार्य वेदार्थी के सारगर्भित व्याखान में पंच महायज्ञों की विधि को स्पष्ट करते हुए सदकर्मों से होने वाले लाभों को परिभाषित किया। कैदियों ने आचार्य वेदार्थी के व्याखानों को उनमुक्त कंठ से सराहा।