
कुछ बने या न बने…भारतीय अवश्य बनें
शैलेश तिवारी, ‘संपादक’ एमपी मीडिया पॉइंट
एक राष्ट्र… जिसमें महाराष्ट्र समाया हुआ है। उस देश की माटी के लिए हमेशा कहा जाता रहा है..
वादी हो कश्मीर की ,
या रेत राजस्थान की।
हमको तो चंदन है मिट्टी,
अपने हिंदुस्तान की ।।
इसी माटी की आन बान और शान बचाए और बनाए रखने के लिए सरहद पर तैनात मां भारती के लाल हंसते हंसते अपने प्राणों को न्यौछावर कर देते हैं। इन जवानों की माताएं सीमा की सुरक्षा के लिए अपने बेटों को रवाना करते समय यह मंत्र देती हैं कि बेटा दुश्मन से जंग छिड़ जाए और उसकी गोली खाने का मौका आए तो सभी गोलियां सीने पर झेलना…. पीठ पर गोली खाकर मेरे दूध को मत लजाना..।
उसी माटी के नागरिक पंजाबी , गुजराती, मराठी, बंगाली, मद्रासी, राजस्थानी आदि आदि सब बने लेकिन भारतीय नहीं बन सके। कभी इससे ऊपर उठे तो चतुर चालक राजनीति ने भाषाओं के खेमों में बांटकर भारतीय बनने से रोक दिया। असल में प्रजा को बांटकर रखना सदा सर्वदा सत्ता के हित में रहा है। इसे अंग्रेजों की नीति मानकर हम भूल गए कि सत्ता का सुख जनता को बांटकर रखने पर ही अधिकतम भोगा जाता रहा है।
जब जब भारत के लोग इन सबसे ऊपर उठकर मां भारती के चरणों में नमन कर राष्ट्रीयता की अलख जगाने निकले तो उन्हें फिर उद्योगपति और मजदूर की श्रेणी में रखा जाने लगा, अमीरी गरीबी के फेर में ऐसा उलझा दिया गया कि अमीरों की पूंजी लूटकर गरीबों की झोली में डालने की दस्यु प्रवृति पनप गई और भारतीयों को एक नहीं रहने के लिए नक्सलवाद भी जड़ें जमाता चला गया। इस बिंदु से हटकर थोड़ा थोड़ा भारतीय बन पाते कि इससे पहले जाति का वर्गीकरण सिर चलकर बोलने लगा और यह ऐसा सिर चढ़ा कि इसका जिक्र आते ही राष्ट्रवाद या भारतीयता न जाने कहां गुम होने लगा।
एक दौर वह भी आया कि इस वर्गीकरण से भारतीयों को बाहर निकालने के लिए किसी ने किसी युद्ध के समय लिखा कि
मंदिर से मस्जिद से निकलो
और निकलो गुरुद्वारों से
अपने वतन की कर लो हिफाजत
दुश्मन के बमबारों से…..।
और सारे वर्ग भेद भूलकर राष्ट्र के रहवासी एकसाथ खड़े हुए और देशभक्ति का जज्बा पूरी तरह सिर चढ़कर बोलता कि इसी के साथ ही हिन्दू , मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि आदि में बांटने की नई कुंजी उनके हाथ लग गई जो भारत के रहने वालों को भारतीय बनने से रोकना चाहते थे। उनकी भावनाओं में बहते चले गए यह भूलकर कि हम जब देश से बाहर विदेश में जाते हैं तो हमारी पहचान केवल और केवल भारतीय होती है। सब कुछ बने बस भारतीय फिर भी न बन पाए।
इसी बीच एक और वाद का उदय हुआ जिसे नाम दिया गया व्यक्तिवाद…. इस व्यक्तिवाद के साथ ही व्यक्ति पूजा शुरू हो गई। राष्ट्र पूजन करने को तत्पर रहने वाले हाथ व्यक्तिपूजा में उलझ गए। यह भी ठीक उस तरह से जैसे फिल्म इंडस्ट्री के पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना और एंग्री यंग मेन की छवि से सुपर स्टार का रुतबा हासिल करने वाले अमिताभ बच्चन के समर्थक अपनी पसंद के हीरो को दूसरे से श्रेष्ठ बताने के चक्कर में एक दूसरे से तू तू.. मैं मैं से वाद विवाद से होते हुए मारपीट तक पहुंच जाते थे। वही स्थिति हमारे राष्ट्रीय परिदृश्य में दृश्यमान हो गई। सत्तर के दशक की यह कुपरम्परा अनवरत रूप से आज भी जारी है। जिसका नुकसान राष्ट्र को उठाना पड़ा है और उठा भी रहा है।
देश के जन का मन भले ही खुद को व्यक्तिगत तौर पर भारतीय मानता रहा है लेकिन हम कभी इस भावना को सामूहिक रूप से निरंतर स्थिर नहीं रख पाए हैं।
इसीलिए हम मताधिकार का उपयोग करने वाले भारतीय मतदान के बाद भी भाजपाई, कांग्रेसी, सपाई, बसपाई, वामपंथी आदि आदि बने रह जाते हैं और याद ही नहीं रहता कि हम पहले भारतीय हैं बाद में कुछ और..? इस राष्ट्रीयता का बोध कब जागेगा , कैसे जागेगा, कौन जगाएगा…? इन सवालों का उत्तर कहीं और खोजने की आवश्यकता नहीं है, जवाब हमारे ही पास है। बस उसे महसूस कर उभारने की जरूरत है।
भारतीयता का भाव सुप्त होने की वजह से यह भी भूल जाते हैं कि देश को आजादी दिलाने की ईरान, इराक , इजरायल से लोग नहीं आए थे । हमारे ही पुरखों ने अपने प्राणों को न्यौछावर कर हमें आजादी की सांसें सौंपी हैं। उन्हीं के बहुमत से 1947 से लेकर 2025 तक देश के संचालन के लिए सरकारें चुनी गई हैं। उस समय देश , काल और परिस्थितियों के अनुसार प्रत्येक सरकार अपना श्रेष्ठतम देने का प्रयास करती रही है और कर भी रही है। हम उस भारत सरकार को देखने का नजरिया भी बदल लेते हैं । सरकार जब कोई काम करती है तो जरूरी नहीं उसका हर निर्णय हमेशा सही ही हो। कभी गलत हो तो सरकार से सवाल करना हमारा अधिकार और कर्तव्य दोनों हैं। और सरकार की जवाबदेही है कि वह अपने नागरिकों के सवालों का जवाब दे। जब वही सरकार सही काम करे तो उसकी प्रशंसा भी दिल खोल कर करना चाहिए। लेकिन ऐसा तभी संभव है जब हमारी आंखों पर भारतीयता का चश्मा लगा हो। दिल राष्ट्र के लिए धड़कता हो। परंतु ऐसा हो इसलिए नहीं पाता कि अधिकांश नागरिक खेमों में बंटे हैं। एक सूत्र में बंधने का एकमात्र मंत्र है भारतीय बनो। इसके अलावा जो कुछ भी बनो वह दूसरी पायदान पर हो। पहली पायदान पर देश हो, मां भारती हो … तभी भारतीय बनना संभव है। किसी दल या पार्टी, व्यक्ति या संगठन विशेष का चश्मा चुनाव के समय लगाएं। बाकी समय केवल भारतीय बने। जयतु मां भारती…. वंदे मातरम…।
शैलेश तिवारी
‘संपादक’