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काश मैं भी सामग्री विभाग का प्रमुख होता- डॉ. शैलेश शुक्ला

व्यंग

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काश मैं भी सामग्री विभाग का प्रमुख होता

डॉ. शैलेश शुक्ला                                              वरिष्ठ संपादक एवं लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार

मामूली संयोग नहीं कि हर बार वही कंपनी टेंडर जीतती है जिसकी मिठाई की डिब्बी सबसे भारी होती है। जब सारे दस्तावेज़ बराबर हों, तब निर्णय का आधार क्या होता है? उत्तर सीधा है — “इमोशनल इंटेलिजेंस।” यानी कौन टेंडर फॉर्म के साथ भावनाओं की गठरी लेकर आया। जब कोई ईमानदार कर्मचारी पूछता है — “सर, बाकी कंपनियाँ बेहतर रेट दे रही हैं”, तो सामग्री प्रमुख उत्तर देता है — “हमें सिर्फ रेट नहीं, रिलेशन देखना होता है।” अगर मुझे भी यह निर्णय शक्ति मिल जाती, तो मैं भी हर साल वही कंपनी चुनता जिससे मुझे रिटायरमेंट गिफ्ट समय से पहले मिल जाए।

कुर्सियों से ज़्यादा बिछौने बदलते हैं इस विभाग में : जब बाकी लोग पुरानी कुर्सियों पर झख मारते हैं, तब सामग्री प्रमुख के कक्ष में हर छह महीने में नया इंटीरियर होता है। पिछली बार जब नया पंखा आया, तो पर्सनल केबिन में एयर प्यूरिफायर भी ‘गलती से’ आ गया। और पूछा जाए तो उत्तर होता है — “यह कर्मचारियों की सुविधा हेतु टेस्टिंग यूनिट है।” टेस्टिंग ऐसी कि घर में भी चलती रहे। काश! मुझे भी ऐसी टेस्टिंग यूनिट मिलती, तो मैं भी कहता — “यह लैपटॉप अभी ऑफिस के लिए ट्रायल पर है, तब तक घर ले जाता हूँ।”

एकमात्र विभाग जहाँ ‘रद्दी’ भी राजस्व बन जाती है : पुराने कंप्यूटर हों, जर्जर कुर्सियाँ हों या टूटी मेज—बाकी विभागों में ये कबाड़ होती हैं, लेकिन सामग्री विभाग में यह कमाई की संभावनाएँ होती हैं। हर स्क्रैप में भी स्कीम होती है। जो सामान 500 रुपए में कबाड़ी को जाए, वह टेंडर के नाम पर ‘सामाजिक संस्थान को दान’ घोषित कर दिया जाता है — और वहाँ से चुपचाप उधार चुकता होता है। सोचता हूँ, काश मैं भी सामग्री प्रमुख होता, तो कबाड़ के जरिए ‘गोल्डन कबाड़ी युग’ शुरू कर देता।

निष्कर्ष : सामग्री प्रमुख होना केवल एक पद नहीं, एक जीवनदर्शन है : जब आप सामग्री प्रमुख होते हैं, तो आपको भगवान से प्रार्थना नहीं करनी पड़ती — “हे ईश्वर, सब कुछ दे देना।” क्योंकि आपके पास पहले से ही वह विभाग होता है जो “सब कुछ खरीद सकता है।” आपके पास टेंडर की तलवार होती है, आपूर्ति की ढाल होती है और आदेश की गदा होती है। आपका निर्णय ही बजट होता है और आपकी मुस्कान ही अनुबंध। इसलिए जब मैं ऑफिस की टूटी कुर्सी पर बैठा सिस्टम हैंग होने की प्रतीक्षा करता हूँ, तो दिल से एक ही आवाज़ आती है — “काश मैं भी सामग्री विभाग का प्रमुख होता।”

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