
व्यंग्य
भ्रष्टाचार सर्वोत्तम व्यवहार अस्ति…
डॉ. शैलेश शुक्ला
वरिष्ठ लेखक, पत्रकार, साहित्यकार एवं वैश्विक समूह संपादक, सृजन संसार अंतरराष्ट्रीय पत्रिका समूह. —————-
जब कोई आम नागरिक सरकारी कार्यालय के चक्कर काटते-काटते थक जाता है, तब उसे एक मार्गदर्शक तारे की तरह भ्रष्टाचार की रोशनी दिखाई देती है। बिना चाय-पानी के भुगतान के फाइलें धूल फांकती रहती हैं, पर जैसे ही जेब गर्म होती है, फाइलें पंख लगाकर उड़ती हैं और मंज़िल तक पहुँच जाती हैं।
सोचिए, अगर भ्रष्टाचार न होता, तो एक वृद्ध व्यक्ति पेंशन के लिए चार साल सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाता और अंत में दम तोड़ देता, पर भ्रष्टाचार की कृपा से अब वह केवल चार हजार रूपये खर्च कर उसी सप्ताह पेंशन प्राप्त कर लेता है। यह समय की बचत है, जीवन की बचत है और कहने की आवश्यकता नहीं कि यह व्यवस्था की गतिशीलता का प्रतीक है। स्कूल में दाखिले से लेकर अस्पताल में इलाज तक, हर जगह भ्रष्टाचार की अनौपचारिक सेवा जनता को अत्यंत लाभ पहुंचा रही है। जो गरीब नागरिक पहले हफ्तों सरकारी राशन के लिए लाइन में लगता था, वह अब “थोड़ा दे-दिलाकर” अगले ही दिन अनाज का थैला लेकर मुस्कुराते हुए घर लौटता है। और ऊपर से ये सेवा बिना किसी जीएसटी या टैक्स के है — कितनी उदार व्यवस्था है ये। अतः यह स्पष्ट है कि जनता के जीवन को सरल, सुगम और संगीतमय बनाने में भ्रष्टाचार से बढ़कर कोई उपाय नहीं।
— भ्रष्टाचार सर्वोत्तम व्यवहार अस्ति।