सीहोर(एमपी) : अबला नारी की उजड़ती क्यारी में न्यायतंत्र ने खिलाए फूल..
एसडीएम कोर्ट का अविस्मरणीय फैसला

- सीहोर(एमपी) : अबला नारी की उजड़ती क्यारी में न्यायतंत्र ने खिलाए फूल..
एसडीएम कोर्ट का सराहनीय फैसला,
जब मां ने हक के लिए उठाई आवाज तो कानून ने भी दिया साथ
हाइलाइट्स
जब बेटे ने मां को घर से बाहर निकाला तो कानून ने दिलाया मां को न्याय
अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए एक मां ने खटखटाया एसडीएम कोर्ट का दरवाजा
मां के भरण पोषण के लिए एसडीएम ने पुत्र को दिया प्रतिमाह राशि देने का आदेश..
सीहोर, 02 जुलाई, 2020
एमपी मीडिया पॉइंट
अबला जीवन हाय तुम्हारी यहीं कहानी…आंचल में दूध और आंखों में पानी। वर्षों पहले उपरोक्त पंक्तियाँ अभिशप्त महिलाओं की स्थिति का चित्रण करने के लिए लिखी गई थी, सीहोर एसडीएम के फैसले उपरांत आज कवि स्व. मैथलीशरण गुप्त की आत्मा को अदालत के फैसले ने ठंडक पहुंचाने का काम किया है।
प्रत्येक व्यक्ति के लिए दुनियां में एक मां ही होती है जो हमेशा यह सोचती है कि उसके बच्चें जीवन में बड़ी से बड़ी सफलता हांसिल करें और इतने काबिल बनें कि पूरी दुनियां उनके सामने झुके। पर अगर वही बच्चे बड़े होकर अपने माता-पिता के लिए अपनत्व की भावना को भूल जाएं तो मां-बाप के लिए इससे बड़ा अघात नही होता। सीहोर एसडीएम कोर्ट में एक ऐसा ही मामल सामने आया जो बच्चों में माता-पिता के प्रति खो रहीं अपनत्व की भावना की कहानी को बयां करता है।
सीहोर की दीक्षित कॉलोनी निवासी बुजुर्ग श्रीमती सावित्री बाई विश्वकर्मा जिनका जीवन अपने पति की मृत्यु के बाद बिल्कुल अकेला हो गया था। उनका एकमात्र सहारा उनका बेटा घनश्याम ही था। पर वक्त ने करवट बदली और वही बेटा एक दिन अपनी मां को उनके ही मकान से बाहर कर गया। घर में ताला लगाकर चाबी अपने पास रख ली और बुजुर्ग मां को दर-दर भटकने के लिए छोड़ दिया। न कोई आय का स्रोत, न कोई सहारा और बीमारी ने श्रीमती सावित्री बाई को कमजोर बना दिया था। मगर सावित्री बाई ने हार नहीं मानी। वे अपने अधिकार और आत्मसम्मान की रक्षा के लिए सीहोर के एसडीएम कोर्ट पहुंची और एसडीएम तन्मय वर्मा से माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण एवं कल्याण अधिनियम 2007 के तहत न्याय दिलाने की गुहार लगाई।
एसडीएम तन्मय वर्मा ने उनकी पीड़ा को सुना, समझा और मामला दर्ज किया गया। बेटे को नोटिस देकर कोर्ट में बुलवाया गया और सुनवाई की गई। अंततः मां को उनका हक वापस दिलाया गया। एसडीएम श्री वर्मा द्वारा बेटे से मकान की चाबी दिलवाई गई, बीस हजार रुपये की राशि भी दिलाई गई और जीवन यापन के लिए सिलाई मशीन उपलब्ध कराई गई। इसके साथ ही माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण एवं कल्याण अधिनियम 2007 के तहत बेटे को एक हजार रूपये प्रतिमाह अपनी मां को देने का आदेश दिया गया।
श्रीमती सावित्री बाई के लिए यह सिर्फ एक फैसला नहीं था, बल्कि उनके आत्मसम्मान की वापसी थी। यह कहानी सिर्फ एक मां की नहीं है, बल्कि उन सभी बुजुर्गों की आवाज़ है, जिन्हें समाज में अक्सर भुला दिया जाता है। सावित्री बाई ने ये साबित कर दिया कि अगर मां खामोशी तोड़ दे, तो कानून भी उसके साथ खड़ा हो जाता है।