
मनुष्य की इच्छापूर्वक की गई क्रियाएं ही कर्म हैं- आचार्य विष्णु मित्र वेदार्थी
सीहोर,20 जुलाई 2025
एमपी मीडिया पॉइंट
मनुष्य द्वारा इच्छापूर्वक की गई क्रियाओं को कर्म कहते हैं।शुभ-अशुभ प्रकार के मिश्रित कर्मों के तीन भेद हैं।
यह उदगार बिजनौर उ.प्र. से पधारे आचार्य विष्णुमित्र वेदार्थी ने महर्षि दयानंद मार्ग गंज स्थित आर्य समाज मंदिर में बुधवार को जारी वेदप्रचार सप्ताह के प्रातः कालीन सत्र में व्यक्त किए।यज्ञ उपरांत व्याख्यान में आचार्य वेदार्थी ने कर्म रहस्य को खोलते हुए आगे कहा कि मनुष्य के कर्मों के दो प्रभाव होते हैं।कर्म का प्रभाव,कर्ता पर भी होता है। अपने कर्म से दूसरों को लाभ पहुंचाना पुण्य कर्म हैं,जबकि अन्य को हानि पहुंचाना,पापकर्म हैं।कर्म के दूसरे प्रभाव से वह कर्ता के अन्त:करण पर छप जाते हैं,इन्हें संस्कार कहते हैं, यही उभरकर पुनः क्रिया के रूप में सामने आते हैं जिससे संस्कार द्रढ होते हैं,कर्म और संस्कारों का यह चक्र चलता रहता है,इनकी पुर्नाव्रति से वह स्वभाव रूप में परिणित होजाते हैं,हमाराकर्त्तव्य है,कि सदा अच्छे कर्मों से अपने अच्छे स्वभाव को बढ़ायें और बुरे कर्मों को छोड़कर गलत स्वभाव को हटायें |
आचार्य वेदार्थी ने कहा कि मनुष्य के कर्म और उनके फल सर्वज्ञ ईश्वर के ज्ञान में सदा विद्यमान रहते हैं। परमेश्वर के न्याय में कोई त्रुटि नहीं होती है हमें कर्मानुरूप ही फलों की प्राप्ति होती है अतः सदा शुभ कर्म करने चाहिये।
आर्य भजनोपदेशक पण्डित भीष्म आर्य ने ईश्वर भक्ति व राष्ट्र भक्ति के भजन व गीतों को प्रस्तुत कर श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध कर दिया।कार्यक्रम का संचालन आर्यसमाज के प्रधान आर्य नरेश राठौर ने किया।कार्यक्रम में उप प्रधान तरूण जगवानी,मंत्री रितेश आर्य,वैदिक प्रवक्ता संतोष सिंह,रमेश राठौर,राजेन्द्र राठौर, रामस्वरूप गौर,राजकुमार राठौर बाबूलाल राठौर, मा.रामदयाल, सहित बड़ी संख्या में आर्यजन महिलाएं श्रद्धालु उपस्थित थे।अंत में शांति पाठ व जयघोषों से कार्यक्रम का समापन हुआ।