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आसाढ वदी (कृष्ण ) चौथ 05-07-1996 अतीत के झरोखे से 

प्रसंग

प्रसंगवश

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आसाढ वदी (कृष्ण ) चौथ

05-07-1996

अतीत के झरोखे से 

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आज से लगभग 28 वर्ष पूर्व मालव माटी पर स्थित पावन सीहोर नगरी धन्य- धन्य हो गई , जब यहां के मंडी क्षेत्र में जैन धर्म के 16 वे तीर्थंकर भगवान श्री शांतिनाथ भगवान की प्रतिष्ठा महोत्सव पूर्वक धूमधाम से संपन्न हुई ।

पूज्य गुरु भगवंतो की निश्रा एवं उनके मार्गदर्शन में मांडू में अंजन शलाका संपूर्ण विधि विधान के द्वारा की हुई जिन प्रतिमाओं का सीहोर मंडी स्थित जिलालय में प्रतिष्ठा हुई।

 

परमपिता परमात्मा की कृपा,

सीहोर नगर वासियों के सामूहिक पुण्य का उदय हुआ,

भगवान के जयकारों के साथ,

ओम पुण्याहं-पुण्याहं,

ओम प्रियंतां प्रियंतां,

के उद्घोष के साथ मंदिर गूंजायमान हो गया।

परम पूज्य मातृहदया श्री अमित गुणा जी महाराज साहब, पूज्य श्री अमी पूर्ण श्रीजी एवं साध्वी मंडल की पूंण्य नीश्रा में विद्वान विधि कारक भाई जी के मंत्र उच्चारों के साथ

मूल नायक श्री शांतिनाथ भगवान एवं श्री आदिनाथ भगवान तथा श्री पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा जी की प्रतिष्ठा संपन्न हुई।

साथ में ही

श्री शांतिनाथ भगवान के

यक्ष(गरुड़) – यक्षिणी (निर्वाणी देवी)

अधिष्ठायक देव श्री मणिभद्र दादा

श्री नाकोड़ा भैरवनाथ

श्री महाकाली माता

एवं भुवन देवी की स्थापना संपन्न हुई।

समय तेजी से गुजरता है, 28 साल बीत गए मानो कल ही की बात हो।

स्मरण करने पर सारा नजारा स्मृति पटल पर साकार हो जाता है।

 

🙏 तीर्थंकर श्री शांतिनाथ दादा🙏

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श्री शांतिनाथ भगवान जैन धर्म के 16वें तीर्थंकर है।

उनका जन्म उत्तर भारत के हस्तिनापुर शहर में इछ्वाकु वंश के राजा विश्व सेन और रानी अचिरा जी के घर हुआ था।

उनकी जन्म तिथि भारतीय कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ कृष्ण माह की चतुर्दशी तिथि है।

श्री शांतिनाथ दादा पांचवें चक्रवर्ती

और 11वीं कामदेव भी थे।

वह 25 वर्ष की आयु में राज सिंहासन पर बैठे।

सिंहासन पर उन्होंने 50000 वर्ष से अधिक शासन किया।

उसके बाद दीक्षा ग्रहण कर ली।

श्री शांतिनाथ प्रभु का लांछन (चिन्ह)

मृग ( हिरण ) है।

उनकी काया (ऊंचाई) 40 धनुष

अर्थात 120 मीटर थी।

उनका रंग स्वर्ण के समान चमकता हुआ था।

सम्मेद शिखर पर्वत पर निर्वाण को प्राप्त हुए।

 

जैन तीर्थंकर श्री ऋषभदेव ,

श्री पार्श्वनाथ, श्री नेमिनथ, श्री महावीर स्वामी के साथ श्री शांतिनाथ भगवान पांच तीर्थंकरों में से एक है जो जैनियों के बीच सबसे अधिक भक्ति पूजा को आकर्षित करते हैं।

श्री शांतिनाथ भगवान को शांति और स्थिरता का प्रतीक माना जाता है।

इसलिए आपदाओं और महामारी को दूर करने के लिए उनकी प्रार्थना की जाती है। और वह भक्तों को कल्याण प्रदान करते हैं।

 

🙏भगवान श्री शांतिनाथ जी के पूर्व भव की कथा अत्यंत मार्मिक एवं प्रेरणास्पद है।

 

श्री शांतिनाथजी के पूर्वजन्म की कथा :

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शांतिनाथ के संबंध में मान्यता है कि अपने पूर्व जन्म के कर्मों के कारण वे तीर्थंकर हो गए। पूर्व जन्म में शांतिनाथजी एक राजा थे। उनका नाम मेघरथ था। मेघरथ के बारे में प्रसिद्धि थी कि वे बड़े ही दयालु और कृपालु हैं तथा अपनी प्रजा की रक्षा के लिए सदा तत्पर रहते हैं।

 

एक वक्त उनके समक्ष एक कबूतर आकर उनके चरणों में गिर पड़ा और मनुष्य की आवाज में कहने लगा राजन मैं आपकी शरण में हूं, मुझे बचा लीजिए। तभी पीछे से एक बाज आकर वहां बैठ जाता है और वह भी मनुष्य की आवाज में कहने लगता है कि हे राजन, आप इस कबूतर को छोड़ दीजिए, ये मेरा भोजन है।

 

राजा ने कहा कि यह मेरी शरण में है। मैं इसकी रक्षा के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं। तुम इसे छोड़कर कहीं और जाओ। जीव हत्या पाप है तुम क्यों जीवों को खाते हो?

 

बाज कहने लगता है कि राजन मैं एक मांसभक्षी हूं। यदि मैंने इसे नहीं खाया तो मैं भूख से मर जाऊंगा। तब मेरे मरने का जिम्मेदार कौन होगा और किसको इसका पाप लगेगा? कृपया आप मेरी रक्षा करें। मैं भी आपकी शरण में हूं।

 

धर्मसंकट की इस घड़ी में राजन कहते हैं कि तुम इस कबूतर के वजन इतना मांस मेरे शरीर से ले लो, लेकिन इसे छोड़ दो। तब बाज उनके इस प्रस्ताव को मान कर कहता है कि ठीक है राजन तराजू में एक तरफ इस कबूतर को रख दीजिए और दूसरी और आप जो भी मांस देना चाहे वह रख दीजिए।

 

तब तराजू में राजा मेघरथ अपनी जांघ का एक टुकड़ा रख देते हैं, लेकिन इससे भी कबूतर जितना वजन नहीं होता तो वे दूसरी जांघ का एक टुकड़ा रख देते हैं। फिर भी कबूतर जितना वजन नहीं हो पाता है तब वे दोनों बाजूओं का मांस काटकर रख देते हैं फिर भी जब कबूतर जितना वजन नहीं हो पाता है तब वे बाज से कहते हैं कि मैं स्वयं को ही इस तराजू में रखता हूं, लेकिन तुम इस कबूतर को छोड़ दो।

राजन के इस आहार दान के अद्भूत प्रसंग को देखकर बाज और कबूतर प्रसन्न होकर देव रूप में प्रकट होकर श्रद्धा से झुककर कहते हैं, राजन तुम देवतातुल्य हो। देवताओं की सभा में तुम्हारा गुणगान किया जा रहा है। हमने आपकी परीक्षा ली हमें क्षमा करें। हमारी ऐसी कामना है कि आप अगले जन्म में तीर्थंकर हों।

 

तब दोनों देवताओं ने राजा मेघरथ के शरीर के सारे घाव भर दिए और अंतर्ध्यान हो गए। राजा मेघरथ इस घटना के बाद राजपाट छोड़कर तपस्या के लिए जंगल चले गए। और अगले जन्म मे जैन परंपरा के 16 तीर्थंकर श्री शांतिनाथ भगवान के रूप में अवतरित हुए।

 

विशेष

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भगवान शांतिनाथ के महत्वपूर्ण मंदिर:

खजुराहो स्थित शांतिनाथ मंदिर

यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल है।

सेमलिया तीर्थ ,भोपावर तीर्थ,

हलेबिंदु शांतिनाथ मंदिर, प्राचीन बड़ा मंदिर हस्तिनापुर, देवगढ़, बसदी, जिननाथपुर, अहरजी तीर्थ, कच्छ गुजरात में स्थित कोठारा तीर्थ, बाबागिरी तीर्थ, इंदौर का कांच मंदिर, लाडलू जैन मंदिर, लीसेस्टर, यूनाइटेड किंगडम जैन मंदिर के साथ आदि भव्य श्री शांतिनाथ जैन मंदिर भी भारतवर्ष में विद्यमान है।

 

उपसंहार

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श्री शांतिनाथ भगवान शांति और स्थिरता प्रदान करते हैं।

इनकी उपासना से विपत्ति और महामारी टल जाती है।

श्री शांतिनाथ स्नात्र पूजा

सार्वभौमिक और सभी प्राणियों के कल्याण के लिए एक विशेष प्रार्थना है।

तीसरी शताब्दी के आचार्य मानदेव सूरी द्वारा संकलित शांतिस्तव के अनुसार भगवान शांतिनाथ के नाम का मंत्र पाठ सभी अपसगुनो को नकार देता है। जीवन में शांति लाता है और भक्तों को समस्याओं से बचाता है।

अत्यंत प्रभावक बृहद शांति स्तोत्र शांति स्नात्र पूजा के दौरान पढा जाता है ।

 

सभी सीहोर नगर वासियों को श्री शांतिनाथ जैन मंदिर मंडी के 28 वें प्रतिष्ठा दिवस के अवसर पर बधाइयां 🙏🎈

 

✍️( संकलन ‌- जयंत शाह)

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