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एक शाम दोस्तों के नाम – वेस्टंडीज से डॉ अजय शर्मा

लेख जरा हटकर~~~~

एक शाम दोस्तों के नाम

ना YouTube, ना Instagram । ना Twitter, ना Facebook । और नाही WhatsApp । मोबाइल तो कोसों दूर, Landline तक नही । उन दिनों Gadgets नहीं थे ।

हां अलबत्ता एक अदद स्कूटर ज़रूर था । तो बस किसी शाम अपने ‘Bajaj Super’ पर कपड़ा मारा और निकल पड़े किसी अज़ीज दोस्त के घर ।

मित्र के घर कुछ देर गपशप । दो अन्य घनिष्ठ मित्रों से मिले भी एक अरसा हो गया था । तय हुआ कि तीसरे और चौथे मित्र को भी घेरे मे लिया जाये । दोनों ने अपने अपने वाहनों का रुख करा बाकी मित्रों के घर की तरह । बीच रास्ते मे कहीं पड़ता था एक रेलवे फाटक ।

लगता है किसी ट्रेन के आने का समय हो चला । फाटक पर बड़े-बड़े अक्षरों मे *STOP* की तख्ती लगी हुई । फल-फूट ठेला, ट्रेक्टर, रिक्शा, टेम्पो, आटो, कार, स्कूटर, बाइक सब का उस फाटक के दोनों और जमावड़ा । कुछ हेल्मेट धारी तो कुछ बिना हेल्मेट के । धूल-मिट्टी से अपना बचाव करते हुए, चेहरे को स्कार्फ से ढके, और हाथों पे कोहनी तक लम्बे gloves पहने, कालेज की छात्राएं और काम- काजी महिलाएं भी उसी भीड़ का हिस्सा । ट्रेन के आने मे अभी कुछ समय । कुछ नवयुवकों मे बढ़ती बैचैनी । फाटक बंद के बावजूद कुछ बाइक वाले जगह बनाते हुए, अपने वाहन को टेढ़ा-मेढ़ा कर, अपनी कमर को झुका, और बाइक को आधा लिटाकर फाटक की रेलिंग के नीचे से निकलने की कोशिश मे लगे हुए । कुछ के प्रयास सफल, मगर कुछ ने थोड़ी बहुत मशक्कत के बाद इरादा बदल दिया । इस बीच एक गडरिये ने भी chance लिया और हिम्मत कर, बार बार दोनों और झांक, अपनी बकरियां पटरी पार करा दी । हांलाकि बाद मे उसे लोगों की बहुत गाली सुन्नी पड़ी । थोड़ी देर मे धड़…धड़..धड़..धड़…के भारी शोर के साथ, ज़ोरदार सीटी देती, तेज़ रफ्तार से निकली पंजाब मेल । साइकिल की घंटियों की ट्रिंग-ट्रिंग और वाहनों की चें-चें- पों-पों-पों के बीच उस क्रासिंग को पार करता सैलाब ।

Crossing के उस पार बाकी दोनों मित्रों का घर । एक सौहार्दपूर्ण मुलाकात के बाद, उन्हें साथ ले आगे बढ़ता काफिला ।

उन दिनों पहले से कुछ प्लान नहीं होता था । जहां चार यार साथ मिल जायें तो program अपने आप बन जाता था । लगता है बहुत दिनों के बाद आज फिर से आया वो दोस्तों की फुल मटरगश्ती वाला दिन ।

शाम बस ढ़लने को ही है, रास्ते मे ही पड़ती थी *अंग्रेजी* की दुकान । कुछ देर वहां पर पड़ाव और फिर कारवां जा कर रुकता उस अंडे की दुकान पर । समय काफी बदल गया, पहले अंग्रेजी होती थी, आजकल लिखा होता है *composite* ।

अंडे वाले से पुरानी पहचान । सो एक सौम्य मुस्कुराहट से स्वागत…“आइये साहब…इस बार तो बहुत दिनों मे आना हुआ” !!! बस दो मिनिट !! …”ज़रा झाडू लगवा दूं ” !!! …….सफाई के तुरंत बाद कांच के साफ-सुथरे चार गिलास और पानी की व्यवस्था । वहीं पास ही दुबकी पड़ी एक लकड़ी की बेंच, जिसे वो तुरंत साफ करता है । फिर उस अंडे वाले ने लड़के को दौड़ाया…”बेटा……फटाफट, …गगन के यहां से, Sir लोगों के लिए नमकीन लेकर आ”।

शायद पास ही कोई ‘Theatre’ रहा होगा । लगता है कोई पिक्चर छूटी । लड़कों की एक टोली फिल्म का Post-mortem करती हुई निकली । “क्या गज़ब दिखती है हेमा मालिनी !!! …Dance भी जबरदस्त करती है” !!! … “गुरू !!!……धर्मेन्द्र की body देखी ?? !, क्या गज़ब fight मारता है !!!
“वो Shetty….. वो तो बड़ा ही खूंखार दिखता है…..strong, लम्बा, चौड़ा, और साले की डरावनी आंखें” ।
“जितेंद्र ठीक नहीं । Fight के लिए थोड़ी body-shody होनी चाहिए ” ।
“Shetty से fight के लिए तो धर्मेन्द्र ही Fit है…हां Vinod Khanna भी बढ़िया रहेगा” । “इन…Director लोगों को फिल्म बनाने से पहले सोचना चाहिए । फिल्म मे Fight scene natural लगना चाहिए । किसी मरियल से हीरो से उस खतरनाक Shetty को पिटवाते हैं । Fight देखकर तो ऐसा लगता है की अगर Shetty एक ज़ोरदार हाथ मार दे तो हीरो पेड़ पर जाकर टंग जाये ।
“वो अजीत………वो तो है ही कमीना” !!!!!
गुज़रती टोलियों के ऐसे ना जाने कितने रोचक विश्लेषण ।

कहीं दूर-दराज बादलों मे थोड़ी-बहुत हलचल,और फिर हल्की सी बूंदाबांदी । सोंधी-सोंधी खुशबू ने फिज़ा को और महकाया । होले-होले से चलते, ठंडी हवा के झोंके । आसमान मे छाई लालिमा, और गुलाबी होती शाम । Wills या Bristol के कुछ कश । पैमाने मचल उठे…..”साकी ने आज मुझको ऐसी नज़र से देखा,… मौसम हुआ गुलाबी रंगीन जाम छलके”….। चंद चुस्कियों के साथ गहराता महफिल का सुरूर ।

सामने से आती कुछ खूबसूरत लड़कियां । वो ठिठक कर रुकतीं, फिर चलतीं । चलतीं फिर रुकतीं और रुक कर फिर चलतीं । थोड़ी झिझक, थोड़ी शर्म, कभी कनखियों से देखतीं, थोड़ी-आपस मे खुसुर-पुसुर और फिर मुस्करा कर आगे बढ़ जातीं । कुछ-कुछ *नीरज जी* के उस गाने जैसा….”शोखियों मे घोला जाये, फूलों का शबाब, उसमे फिर मिलाई जाये थोड़ी सी शराब, होगा यूं नशा जो तैयार”……। सड़क पर बढती चहल-पहल देख वो अंडे वाला अपने Patromax (गैसलेम्प) को कुछ मद्धिम कर देता ।

धीरे-धीरे रात और गहरा रही, लेकिन बातों का दौर अब भी जवां । जहां हुई पिछली मुलाकात खत्म , वहीं से फिर शुरू । किस्से कुछ नये, कुछ पुराने । कुछ स्कूल, कुछ मोहल्ले की यादें । कुछ बीती शरारतें, कुछ पुरानी खुराफातें । कुछ खताएं, कुछ नसीहतें ।

Wills के कुछ और कश । कुछ और ग्लास टकराये । बातों का दौर और भी गहराया ।
राजनीति से लेकर खेल-कूद और खेल-कूद से लेकर फिल्में ।
बात निकली Cricket की और ज़िक्र छिड़ा उस बल्लेबाज का जिसने बिना हेल्मेट के वेस्टइंडीज के तूफानी गेंदबाजों के खिलाफ रिकार्ड 13 शतक बना कर क्रिकेट जगत मे भारत के झंडे गाड़े । इसी ‘लिटिल मास्टर’ की क्षमताओं और उपलब्धियों की प्रशंसा करते हुए West Indies मे लिखा गया “Gavaskar Calypso”.

पास ही के टी-स्टाल पर दो तीन साइकिल आकर खड़ी हुईं । शायद अखबार बांटने वाले बालकों की थीं । साइकिल के केरियर पर दर्जनों फिल्मी मैग्ज़ीन । एक मैग्ज़ीन के मुखपृष्ठ पर आंखों पर काला चश्मा और गले मे नीला स्कार्फ डाले, बाइक पर राजेश खन्ना और हेमा मालिनी की फिल्म अंदाज की फोटो ….”ज़िन्दगी एक सफर है सुहाना यहां कल क्या हो किसने जाना” । लोग रुक-रुक कर उस मैग्ज़ीन को देखते । बात चली राजेश खन्ना के स्टारडम की । उन दिनों राजेश खन्ना का ऐसा जादू की लड़कियां तो उसकी दीवानी थी हीं, मगर लड़के भी पीछे नही । बहुतों ने अपना नाम बदल कर राजेश रख लिया और वो उम्मीद करते की नाई उनकी Hair style भी राजेश खन्ना जैसा कर दे । कुछ Fans ‘दाग’ फिल्म देखकर खन्ना की तरह मूँछें रखने लगे तो कुछ ने ‘अंदाज’ फिल्म के गाने से प्रभावित होकर बाइक खरीद डाली ।

किसी समाचारपत्र की सुर्खियों ने फिर चर्चा का रुख मोड़ा । अखबार ने प्रकाशित किये कुछ ज्योतिषियों के पूर्वानुमान …. ‘ग्लोबल-वार्मिंग’, ‘महाशक्तियों के बीच बढ़ता तनाव’, ‘आने वाले चुनाव’ और राजनीतिज्ञों का संभावित ‘भविष्य’ । ज्योतिष गणना के हिसाब से कुछ राजनेताओं के लिए तो समय अनुकूल मगर कुछ के सितारे गर्दिश मे । जिनके सितारे गर्दिश मे उनके दिल की धड़कनें बढ़ी हुई, और रातों की नींद हराम । । कुछ लगा रहे धर्म-गुरुओं के चक्कर । ग्रहों की शांति के उपायों को लेकर भागदौड़ । किसी नेता ने गले मे डाली रुद्राक्ष की माला तो किसी ने पहनी शनि से शांति वाली अंगूठी । ऐसे कई दिलचस्प समाचार और किस्सों से अखबार भरे पड़े ।

अनगिनत topics और कभी ना खत्म होने वाली बातें । यूं समझिये कि उन तीन- चार घंटों मे देश-विदेश, संयुक्त राष्ट्रसंघ, भारतीय संसद, विधानसभा सब का Headquarter वो अंडे का ठेला ही था ।

तीन घंटे कब गुज़र गये गये ऐहसास ही नही हुआ । आहिस्ता-आहिस्ता सरकती घड़ी की सुईयां कहां पहुंची ये तब पता चला जब उस ठेले वाले के रेडियो पर एक सुरीली आवाज़ सुनाई दी.. “रात्रि के 11 बजना चाहते हैं, विविध भारती की सायंकालीन सभा अब समाप्त होती है. …शुभरात्री ” ।

बहुत देर से इंतजार करते, बगल की उस दुकान से पान वाले ने आवाज लगाई…”बाबूजी अब पान लगा दूं”.??.

ऐसी कई दास्तानों को गुज़रे बहुत कुछ बरस हो गये…

दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन ।

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