“भैरुंदा स्कूल बस दुर्घटना कांड” : जागो प्रशासन… इन हालातों में कैसे ले पाएंगे सेंट्रल या प्राइवेट स्कूलों से टक्कर!!
सबक के लिए शासन को क्या ओर भी बड़े हादसे का इंतजार !

“भैरुंदा स्कूल बस दुर्घटना कांड” : जागो प्रशासन… इन हालातों में कैसे ले पाएंगे सेंट्रल या प्राइवेट स्कूलों से टक्कर!!
त्वरित
राजेश शर्मा
चाणक्य निति से लिया संस्कृत में एक श्लोक आता है
एकमव्यक्षरं यस्तु गुरु: शिष्यं प्रभोधयेत् ।
पृथिव्यां नास्ति तद्दव्यं यद्दात्वा सोSनृणी भवेत्।।
अर्थात यदि कोई गुरु अपने शिष्य को वर्णमाला का मात्र एक अक्षर भी सिखाता है तो इस प्रथ्वी में ऐसी कोई वस्तु नहीं है जिसे दे कर वह अपने गुरु द्वारा शिक्षित किये जाने के ऋण से मुक्त हो सकता है।
हम इस श्लोक ओर भी सरलता से समझने की कोशिश करते कि एक अक्षर भी ज्ञान के रुप में गुरु शिष्य को देता है तो उसकी खासियत यह होती है कि वह अक्षर तब भी उस शिष्य के जहन में रहता जब प्रथ्वी,जल वायु आदि सब कुछ नष्ट हो जाते है। इसलिए ज्ञान के रुप में मिला एक अक्षर अमर और अमिट रहता है।
ऐसे ज्ञान को प्राप्त करने बच्चा अपने घर-बार,लड़प्पन आदि का त्याग करके स्कूल की तरफ रुख करता है तो उसके अभिभावक भी घंटों किलकारियां रहित उस घर में बच्चे के आने का इंतजार करते हैं। अब कल स्कूल बस दुर्घटना के दौरान बाल-बाल बचे बच्चों के 35-40 घरों में क्या गुजरी होगी और कैसे-कैसे सवाल उनके ज़हन में हिचकोले भर रहे होंगे!आसानी से समझा जा सकता है।
भैरुंदा का स्कूल “बस दुर्घटना कांड” कई सवाल खडे कर कर गया है। ड्राइवर के हाथ में 35-40 बच्चों की जान थी और जिम्मेदारी थी बच्चों को सही सलामत घर पहुंचाना, वो कहने के लिए पेशेवर ड्राइवर जरुर था लेकिन वह भारत के भविष्य का सारथी भी था।
लेकिन नासमझ ड्राइव नशे में धुत होकर बच्चों की जिंदगी,अभिभावकों की उम्मीदों और भारत के भविष्य से खेलता हुआ वाहन चला रहा था।
उसने नशे में जिस ट्रांसफॉर्मर से स्कूल बस को टकराया उस वक्त गांव में बिजली गुल थी या यह कह सकते हैं कि बच्चों के परिजनों की किस्मत अच्छी थी।
यदि लाइट रही होती तो दुर्घटना कितनी भयवह होती इसे सोच कर ही आम लोगों के बदन में अब भी रोंगटे खड़े हो रहै हैं।
अब सवाल यह उठता है कि सीएम राइस स्कूल की बस चलाने के पीछे शासन का उद्देश्य क्या था? बसों को ठेकेदारी प्रथा से चलाना ? बिना फिटनेस की गाड़ी बच्चों के भविष्य को जोखिम में डालना ? वाहन चालक के अनुभव,उम्र,शैक्षणिक योग्यता,मेडकल सर्टिफिकेट, पुलिस वेरिकेशन क्या कोई अवश्यकता नहीं है।
हमें बस टाइम पर वाहन चाहिए चाहे कैसी भी हो… चाहे उसे कोई भी चला रहा हो , हमे इससे क्या लेना-देना सब ठेकेदार जाने। जिम्मेदार अधिकारियों को तो ड्राइवर का नाम एवं चाल-चरित्र तक नहीं पता। अमूमन समूचे मध्यप्रदेश में सीएम राइस स्कूल बसों की यही हालत है।
उधर ठेकेदार को भी हर महिनें मिलने वाली मोटी रकम से मतलब है वाहन के ‘मेंटेनेंस” से कोई मतलब नहीं।
भैरुंदा का “स्कूल बस कांड” तो प्रदेश की हांडी से निकला वह एक चावल है जिससे पता लगया जा सकता है कि पूरी हांडी के क्या हाल-चाल चल रहे होंगे।
अभिभावकों से इस संबंध में बातचीत की गई तो उनका दो टूक जवाब यही था कि हम स्कूल प्रबंधन के भरोसे बच्चों को बस से अपडाउन करा रहे है। ठेकेदार के भरोसे नहीं। कल ना जाने कौन से कर्म आढ़े आए कि आज हमारे बच्चे हमारे साथ है। कल की घटना से इतने भयभीत हो गए हैं कि भले ही कई 3-5 किलोमीटर पैदल चलकर या साइकिल से स्कूल चले जाएंगे लेकिन जान लेवा बस में सफर नहीं करेंगे।
पता चला है कि समूचे सीहोर जिले में सीएम राइस स्कूल बसों की अमूमन यही हालत है। किसी भी दिन कहीं से भी अप्रिय समाचार मिल सकता है।
पता चला है कि ज्यादातर बस के ठेकेदार वही हैं जो सरकारी हुक्मरानों से राजनीतिक ताल्लूकात बनाए हुए हैं। यदि जिम्मेदार अधिकारी ने जुबां खोली तो रसद बंद और कुर्सी अलग हिलने लगेगी।
मध्यप्रदेश में 274 सीएम राइज़ स्कूल हैं। जिनका नाम बदलकर अब ‘सांदीपनि स्कूल’ रख दिया गया है। इन स्कूलों की बसे 3 से 5 किलोमीटर के दायरे में अपनी सेवाएं देती है। राज्य शासन द्वारा इस स्कूल को उच्च गुणवत्तायुक्त बनाने के पीछे मुख्य उद्देश्य यह है कि सेंट्रल स्कूल एवं प्राइवेट स्कूलों से टक्कर लेना। लेकिन वर्तमान में प्रदेश के यह स्कूल सेंट्रल या प्राइवेट स्कूल से टक्कर लेने में फिसड्डी ही नजर आ रहे हैं। सीएम राइज़ स्कूलों के हालात अंदर से बाहर तक नए सिरे से बदलने होगें नहीं तो शासन अरबों रुपया फूंक कर भी बच्चों का भविष्य कैसे उज्ज्वल बना पाएगा? बच्चों के बाल-बाल बचने एवं संपूर्ण घटनाक्रम पर एक शेर मौजू लगता है।
” दर्द से भी “दवा” का काम लिया जाता है,
गर गिर भी जाए कितना ही “राजेश”,
जाने कौन सी दुआओं में थाम लिया जाता है… “