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हमको मिली हैं यह घड़ियां नसीब से….

भूले-बिसरे गीत आज भी प्रासंगिक

हमको मिली हैं यह घड़ियां नसीब से…

    शैलेश तिवारी
सीहोर (मध्यप्रदेश)

आइए… आज उस गीत की गंगा में डुबकी लगाते हैं…. जो गीत एक रूहानी आवाज में प्यार की इल्तज़ा करता है.. जैसे ब्रह्माण्ड की दिव्य शक्तियों का आव्हान हो…. लता मंगेशकर के कोकिल कंठी स्वर ने इस गीत को गाया था 1964 में बनी फिल्म … वो कौन थी… के लिए। और जब इस गाने की स्वर्णजयंती 2014 में मनाई गई…. उस समय लता जी ने कहा कि…. 50 साल बाद भी यह गाना एकदम ताजा लगता है…… हालांकि दो साल पहले यानी 2012 में लता जी ने अपने गाए हुए सर्वश्रेष्ठ छह गीतों की सूची जारी की…. उसमें में लताजी ने स्वयं इस गीत को शामिल किया ….. ।

मजेदार बात यह है कि फिल्म … वो कौन थी… के निर्देशक राज खोसला के सामने जब यह गीत पहली बार फिल्म में शामिल किए जाने के लिए रखा गया तो उन्होंने इस गाने को रिजेक्ट कर दिया था…. बाद में फिल्म के हीरो मनोज कुमार ने इसे शामिल करने की सिफारिश फिल्म के संगीतकार मदन मोहन के सामने ही की… तो उस प्रस्तुतीकरण को सुनकर राज खोसला जी को अपनी गलती का अहसास हुआ और गाना फिल्म में शामिल हो गया…।
अब आप सोच रहे होंगे कि वह गाना आखिर है कौन सा… जिसने 61 साल बाद आज भी एक तहलका सा मचा रखा है…. इससे पहले कि मैं आपका परिचय उस गाने से कराऊं…. यह बता देना चाहता हूं कि गीत ने राजा मेहंदी अली खान की कलम से जन्म लिया था…. कुछ गाने वाकई कालजई बन जाते हैं… यह गाना भी उन्हीं में से एक है…… गाने के बोल हैं … लग जा गले कि फिर हंसीं रात हो न हो…..।
पुराने गीतों के शौकीनों को वह दौर ही याद आ गया होगा … जब उनके होंठों की कैद में यह गीत बंदी बना रहता था… लगातार गुनगुनाए जाते थे…। याद गया न….. लता जी के स्वर को मदन मोहन जी ने राग पहाड़ी में इस तरह ढाला है कि…. ज़माने भर के प्यार आग्रह गीत के बोल में सुनाई देता है… शब्द दर शब्द जब हम राजा मेहंदी अली साहब की काव्य धारा में गोते लगाते हैं… तो हर शब्द जैसे सालों से प्यार से महरूम मालूम होता है… उस पर संगीत का कमाल यह है कि…. अंतरे में संगीत एकदम से धीमा होकर हर शब्द को ऐसे उकेरता है कि श्रोता के दिल के प्यार के सागर की एक एक बूंद… लहरों की तरह हिलोरे मारने लगती है …. और अंतरे को विराम देने से पहले लता जी जब मुखड़े पर आती हैं… और गाती हैं… लग जा गले…” कि” के स्थान पर …”से” … का प्रयोग तीन बार कर के छोड़ देती हैं…. तब तो कसम से दिल अन मिले प्यार की टीस से कराह उठता है…. और उसी समय मदन मोहन जी संगीत एकदम ऊंचाई को छू कर… प्यार का ऐसा तिलिस्मी संसार रच देते हैं कि… दिल की चोक नस नाड़ियां भी खुल जाएं…..।
यह गाना फिल्माया गया है मनोज कुमार और साधना के ऊपर…. सिचुएशन इतनी लाजबाव बनाई है कि लगता है जैसे गीत के शब्द केवल और केवल यहीं के लिए लिखे गए हों… जिन्होंने यह फिल्म नहीं देखी है उनके लिए बताता चलूं कि … नायक और नायिका का विवाह हो गया है… लेकिन रहस्य रोमांच से भरपूर इस फिल्म में उनका मिलन नहीं हो पाया है…. एक अरसे बाद नायिका और नायक सुनसान और सन्नाटे वाली जगह पर मिले हैं…. वहीं यह गीत नायिका साधना गाना शुरू करती हैं… आइए आप भी उस गीत के बोल पढ़ लीजिए….

लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो
शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो
लग जा गले से …

हमको मिली हैं आज, ये घड़ियाँ नसीब से
जी भर के देख लीजिये हमको क़रीब से
फिर आपके नसीब में ये बात हो न हो
फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो
लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो

पास आइये कि हम नहीं आएंगे बार-बार
बाहें गले में डाल के हम रो लें ज़ार-ज़ार
आँखों से फिर ये प्यार कि बरसात हो न हो
शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो

लग जा गले कि फिर ये हस्सीं रात हो न हो
शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो
लग जा गले कि फिर ये हस्सीं रात हो न हो”

गीत का जो आखिरी अंतरा है… उसकी एक लाइन है..
” आंखों से फिर प्यार की बरसात हो न हो..”
इस पंक्ति का फिल्मांकन करते हुए फिल्म के फोटोग्राफर के कपाड़िया ने भी कमाल किया है…. यह लाइन गाते हुए नायिका साधना की आंखों से आंसुओं की धार बहती हुई उनकी ठोडी के नीचे तक आती हुई साफ दिख कर दर्शक की आंख की कोर में नमी ला देती है। ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म में रात के दृश्य में यह देखना भी एक अनूठा अहसास है…।
वैसे प्यार भी है तो एक अहसास ही… जिसे महसूस किया जाना आसान है और शब्दों में व्यक्त करना मुश्किल… इस मुश्किल काम को आसानी से होते हुए देखना हो तो इस गीत का वीडियो देखा जा सकता है…। एक बार आप भी इस शानदार गीत, संगीत, निर्देशन, अभिनय और फिल्मांकन की दावत का आनंद जरूर लीजिए।
फिर अगले पड़ाव पर … आपसे मुलाकात होगी….। जय जय…।

शैलेश तिवारी, सीहोर, मप्र

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