
- ♦.सीहोर को जरुरत है आप सब की, अब लौट आइए…
जयंत शाह
स्थानीय संपादक
अंग्रेजों की गुलामी के विरुद्ध सन 1824 में क्रांति का आगाज जिस सीहोर नगर की धरा पर सर्वप्रथम हुआ।
यह वही सीहोर नगर है जहां नगर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध एकजुट होकर लड़ते हुए देश में ब्रिटिश शासन रहते हुए नगर में क्रांति का बिगुल फूंक दिया और सीहोर कोतवाली पर कब्जा करके सिपाही बहादुर सरकार का गठन कर दिखाया।
आज के दौर में सीहोर में इस प्रकार के सक्षम नेतृत्व का कहीं ना कहीं अभाव प्रतीत होता है जिनकी बात मे वजनदारी हो , और उनकी अगुवाई सर्वमान्य हो। आज के दौर के नेता उस प्रकार का विश्वास जनता में पैदा करने में कहीं न कहीं असफल रहे हैं।
सीहोर की हालत को देखकर लगता है कि जो नेता, समाजसेवी, पत्रकार दुनिया से चले गए उन्हें वापस आना चाहिए. सीहोर हमेशा से ऐसा नहीं रहा. पढ़िए सीहोर के उन लोगों की कहानी जो जब तक जीवित रहें, सिर्फ जनहितैषी रहे.
सीहोर की जनता ने सीहोर नगर में पीने पानी की समस्या से निपटने के लिए गैर राजनीतिक रूप से आंदोलन चलाकर तत्कालीन सरकार को झुकने के लिए मजबूर कर दिया। परिणाम स्वरूप तत्कालीन सरकार को पार्वती जल प्रदाय योजना मंजूर करना पड़ी।
वरिष्ठ नागरिकों के मार्गदर्शन एवं युवाओं की सक्रिय भागीदारी के साथ ऐतिहासिक और सफल आंदोलन का गवाह है सीहोर शहर
दौर था सन् 1978-1979 का सीहोर की जनता पेयजल की कमी से जूझ रही थी।
उस दौरान शहर के जागरूक नागरिकों ने दलगत राजनीति, आपसी मतभेद, निजी महत्वाकांक्षा,
सब कुछ भूल कर एक जूट होकर
पार्वती जल प्रदाय योजना की मंजूरी के लिए आंदोलन का
बीड़ा उठाया। पार्वती आंदोलन में बुजुर्ग से लेकर युवाओं ने कंधे से कंधा मिलाकर आंदोलन को सफल बनाया । जब आंदोलन की रूपरेखा तैयार की गई तो सर्वसम्मति से सीहोर नगर के ऐसे वरिष्ठ नागरिकों को आंदोलन के मार्गदर्शन की कमान सौंप गई जिनकी बात सभी सम्मानपूर्वक मानते थे।
विभिन्न क्षेत्रों में अपनी सशक्त पहचान रखने वाले समाज सेवा एवं राजनीति से जुड़े हुए वरिष्ठ नागरिकों ने जो स्वयं भी अपने-अपने क्षेत्र में हस्ती थे ने मिलकर आंदोलन के मुखिया के रूप में बाबू भंवर लाल जी कांसट को चुना।
क्योंकि प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा सख्त प्रशासनिक छवि के व्यक्ति थे। इसलिए आंदोलन के दौरान कई बार ऐसा भी मौका आया जब आंदोलनकारी और पुलिस आमने-सामने आ गए थे।
एक तरफ मुख्यमंत्री के सख्त आदेश
दूसरी तरफ जोश से भरे हुए युवा परंतु आंदोलन का मार्गदर्शन कर रहे वरिष्ठ और परिपक्व समाजसेवी, जन् नेताओं ने स्थिति को बिगड़ने नहीं दिया, टकराव को भी टाला और आंदोलन को भी समाप्त नहीं होने दिया।
आंदोलन का परिणाम यह हुआ कि अंततः सरकार को जनता की मांग माननी पड़ी। एवं पार्वती जलप्रदाय योजना को मंजूरी देना पड़ी।
जन्नोन्मुखी पत्रकारिता की मिसाल
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कमोबेश ऐसा ही कुछ पत्रकारिता के क्षेत्र में भी देखने को मिलता है, उसे दौर की लेखनी सरकार और प्रशासन के इर्द-गिर्द घूमते की अपेक्षा जनता की भावनाओं को अधिक तवज्जो देती थी। आलम यह था कि प्रशासनिक अधिकारी अखबारों में छपी खबरों को महत्व भी देते थे। एवं उचित लगने पर उसके अनुसार से निर्णय भी लेते थे।
जन भावनाओं को नजर अंदाज करने का साहस नहीं जूटा पाते थे।
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70 के दशक का इमरजेंसी का दौर था। सीहोर में एसडीओ थे ओपी शर्मा साहब । बड़ी सख्त और दबंग छवि होने की छाप थी उन पर।
श्री शर्मा जी ही नगर पालिका प्रशासक भी थे।
अपने पावर और अपनी दबंग छवि का फायदा उठाते हुए सीहोर की धरोहर एक एंटीक तोप शर्मा जी ने एंटीक का कारोबार करने वाले को चुपचाप को बेच दी।
परंतु वह यह भूल गए चाहे इमरजेंसी लगी हो चाहे जितने भी सख्त छवि बना कर रखने वाले कलेक्टर या अन्य अधिकारी हों सीहोर में बाबा भारतीय एवं ऋषभ गांधी जैसे जागरूक पत्रकार होते हुए नियम विरुद्ध मनमानी नहीं कर सकते।
दोनों पत्रकारों की कलम जब इस पूरे घटनाक्रम पर चली परिणाम यह हुआ कि, वह तोप वापस सीहोर लानी पड़ी।
जो आज नगर पालिका भवन की ऊपरी मंजिल पर सीहोर की समृद्ध धरोहर को दर्शाती हुई लगी हुई है।
राजनीति में स्वयं की महत्वाकांक्षाओं से ऊपर शहर हित को महत्व दिया ।
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राजनीति में कई मौकों पर नेताओं के सामने ऐसी स्थिति आ जाती है जब आपनी पार्टी और अपने राजनीतिक करियर से इत्तर जनहित के बीच में किसी एक का चुनाव करना पड़ता है।
इस सिलसिले में मेरी स्मृति में कुछ चेहरे प्रमुख रूप से उभर कर आते हैं।
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जिनमे पूर्व विधायक शंकर लाल साबू का व्यक्तित्व याद आता है।
शंकर भैया जब विधायक नहीं थे तब भी बड़े मीडिया घरानों
एवं बड़े राज नेताओं से भी उनकी अच्छी खासी पहचान थी।
परंतु शंकर भैया ने अपने पूरे जीवन मे अपने पत्रकारिता एवं राजनीतिक संपर्कों का लाभ स्वयं के लिए ना उठाते हुए सीहोर वासीयों एवं अपने मित्र मंडल के लिए उपयोग किया।
स्व. अर्जुन सिंह जी तात्कालिक समय में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री थे। शंकर भैया ने विधायक रहते हुए सीहोर के लिए नवोदय विद्यालय, एवं केंद्रीय विद्यालय मंजूर करवाया।
सीहोर के साहित्यकार कैलाश गुरु स्वामी की पुस्तक का प्रकाशन मानव संसाधन विकास मंत्रालय से करवाया। बाद के वर्षों में मध्य प्रदेश सरकार मे जनसंपर्क मंत्री सज्जन वर्मा से भी उनकी बहुत अच्छी मित्रता होने का लाभ सीहोर के पत्रकारों एवं साहित्यकारों तथा सीहोर के विकास को ही मिला।
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इसी प्रकार भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे एडवोकेट सुदर्शन महाजन का भी स्मरण होता है।
लंबे समय तक देश में एवं प्रदेश में कांग्रेस का शासन रहते हुए भाजपा के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं पर आने वाली हर मुसीबत में उनके साथ खड़े रहने वाले एवं विपक्ष का झंडा हमेशा ऊंचा उठाकर चलने वाले सुदर्शन महाजन की भाजपा की राजनीति में अच्छी पकड थी। प्रदेश में भाजपा सरकार आने के बाद बहुत सारे मंत्री एवं संगठन से जुड़े हुए लोगों से उनका बहुत ही करीबी संपर्क था। परंतु महाजन साहब को कभी नेताओं के इर्द-गिर्द घूमने की जरूरत नहीं पड़ी।
जनहित के मामलों को हमेशा दमदारी से उठते रहे। भाजपा की सरकार रहते हुए बड़े हुए बिजली बिलों के लिए सड़क तथा अदालत दोनों में संघर्ष किया। तथा प्रशासन को झुकने के लिए मजबूर किया।
इसी सिलसिले में बहुत ही सोम्यतर और मिलनसार व्यक्तित्व के रूप में प्रकाश व्यास “काका” का स्मरण जेहन में आता है। शहर के सभी सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यों में हमेशा अग्रणी भूमिका में रहने वाले प्रकाश काका का राजनीति में भी हस्तक्षेप रहता था। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी से उनके पारिवारिक रिश्ते थे। सीहोर के चार बार के विधायक न केवल उनका सम्मान करते थे बल्कि उनकी कही हुई बात को पूरी तवज्जो देते थे।
प्रकाश काका ने अपना पूरा जीवन समाज सेवा एवं अपने मित्रों को सहयोग पहुंचने में समर्पित कर दिया। सीहोर में जब एक समय सांप्रदायिक तनाव का माहौल बन गया था उस समय काका ने आगे आकर अपने लोगों का बचाव किया।
गलतफहमी और गलत सूचनाओं के चलते जब प्रकाश काका पर गिरफ्तारी वारंट निकाला तो उनका सामाजिक और राजनीतिक कद देखकर प्रशासन एवं पुलिस उनकी गिरफ्तारी का साहस नहीं जुटा पा रहे थे तब प्रकाश काका ने स्वयं के मित्र तत्कालीन टीआई वाजपेई साहब के साथ जाकर स्वयं को पेश कर प्रशासन की उलझन भी दूर की एवं अपने मित्र का भी मान बढ़ाया।
इसी प्रकार सीहोर नागरिक बैंक के चुनाव में स्वयं पूर्ण बहुमत लाने के बाद भी अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद बीच कार्यकाल में अपने मित्र की इच्छा का सम्मान करते हुए स्वयं त्यागपत्र देकर अपने मित्र कैलाश अग्रवाल को नागरिक बैंक का अध्यक्ष बनवाया। यह था काका का व्यक्तित्व।
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चंद्रकांत दासवानी ने कम उम्र में अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए लोगों के दिल में जगह बनाई।
एक ऐसा व्यक्तित्व जिसका कम उम्र में चला जाना मेरे लिए निजी रूप में भी बहुत बड़ी क्षती रही चंद्रकांत दासवानी “बल्लू भैया” ।
कम उम्र में ही अपने परिश्रम और व्यवहार से न केवल अपने परिवार, न केवल सीहोर सिंधी समाज के लिए उपलब्धियां हासिल की।
परंतु सीहोर में पत्रकारिता ,साहित्य एवं समाज सेवा से जुड़े प्रत्येक आयोजन में बल्लू भैया के महत्वपूर्ण भूमिका रहती थी। बल्लू भैया स्टेज पर कम परंतु पर्दे के पीछे महत्वपूर्ण भूमिका में रहते थे। अपने परिचित के यहां यदि कोई आयोजन हो तो कैसे कम से कम बजट में अच्छे से अच्छा आयोजन संपन्न हो जाए यह बल्लू भैया की विशेषता थी। बल्लू भैया के संपर्क में रहने वाले परिवार में कोई समस्या हो या बीमारी हो या डॉक्टर से संपर्क करना तो आगे रहकर मोर्चा संभालते थे एवं अपने हंसमुख स्वभाव से न केवल हौसला प्रदान करते थे हर स्तर पर सहयोग करने के लिए तत्पर रहते थे।
” सुकून मिलता है, दो लफ्ज कागज पर उतारकर,
चीख भी लेता हूं, और आवाज भी नहीं होती.”..