मध्यप्रदेशराजनीति

कायदे से ज़रीब नहीं फैक पा रहा मध्यप्रदेश कांग्रेस का पटवारी – राजेश शर्मा

राजनिति

कायदे से ज़रीब नहीं फैक पा रहा कांग्रेस का पटवारी

राजेश शर्मा

विशेष टिप्पणी

विनाश काल ए विपरीत बुद्धि, राजनिति के मैदान में इसी कहावतानुसार कई नेताओं का एबार्शन हो गया जिसमें कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी का नाम भी शुमार है ।

आखिर क्यों और किस योग्यता अथवा विशेषता के आधार पर इस हारे हुए कांग्रेस प्रत्याशी को मध्यप्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी गई? क्या दिल्ली की बिल्ली के चमचागिरी के आधार पर?

लोकसभा चुनाव में कॉग्रेस पार्टी की हार (बेइज्जति) का उत्तरदायी कौन, सूत्रों के अनुसार इज्जत बचाने के लिए दिल्ली में अलाकमान के पास पद से इस्तीफे का एक कागज़ पटक आए ताकि जनता में यह संदेश न जाए कि हटाया गया है ।

जीतू पटवारी को समय रहते पदमुक्त नहीं किया गया तो आगामी उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी ‌को गंभीर परिणाम भोगने के लिए तैयार रहना चाहिए ।
जनमानस, चौराहों पर चर्चा है कि आखिर कांग्रेस पार्टी को आखिर कौन सा सांप सूंघ गया जो लगातार हारे जुआरी पर दाव लगा रही है ।

दुष्यन्त कुमार की यह पंक्तियाँ इन महाशय के लिए मुनासिब साबित होती हैं कि….

अब तो इस तालाब का पानी बदल दो,
ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं।
वो सलीबों के करीब आए तो हमको,
कायदे-कानून समझाने लगे हैं।

हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी जिसका लोहा आज भी विश्व मानता लेकिन उस खेल की विशेषताओं में एक विशेषता यह भी है कि खिलाड़ी अमूमन 28 वर्ष की‌ उम्र के आसपास स्वच्छा से सन्यास (रिटायरमेंट) ले लेता है लेकिन राजनितिक खेल ऐसा है कि हाथ अगरबत्ती और पैर मोमबत्ती बन गए फिर भी पीछे नहीं हट रहे।

प्रदेश लेबल के नेताओं जरा सत्यता पर ध्यान केंद्रित करना,/मैं मूलतः मध्यप्रदेश के इछावर का रहने वाला हूं। और प्राणांत भी यही होंगे, और यहीं होगा पंचत्व से बना यह शरीर विलीन।

शास्त्रीय भाषाओं के अनुरुप मातृभूमि के रक्षार्थ अपने स्वार्थ को त्यागना चाहिए और चमचों को‌ नहीं‌ बल्कि नए खून को मौका देना चाहिए। ‍अच्छा उसमें भी पढ़लिखा होना चाहिए।

अखिर में बस कहना है कि मध्यप्रदेश में कब्र के अंदर पैर लटकायी कांग्रेस पार्टी को फिसलने से बचाएं और जरीब कायदे से नहीं गिर रही तो पटवारी पद उसे सौंपे जो कांपटिशन फेस करने बाद इस पद के ……कायदे में हकदायी हैं।

और अंत में….

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी ,
शर्त यह थी कि बुनियाद हिलनी चाहिए।

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