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कुंवर चैन सिंह की शहादत स्थली सीहोर में ‘मामा’ भी ख़ुश ‘बच्चा’ भी ख़ुश…

त्वरित विचार

  1. कुंवर चैन सिंह की शहादत स्थली सीहोर में ‘मामा भी खु़श बच्चा भी खुश’..

                                                      राजेश शर्मा

एक सितंबर को सीहोर के राजनीतिक हल्के में जो कुछ घटित हुआ वह सूबा जाहिर है। इसके बाद कांग्रेस का प्रत्याक्रमण सोशल मीडिया पर ‘राजधानी एक्सप्रेस’ से भी तेज बताया गया। उस पब्लिक को जो उस ‘मामा’ की तरह है जो सब कुछ जानती है।.. अबोध बालक जो कहता है “मामा” आपके पीछे बंदर…, और साहब ! मामा यह जानते हुए भी कि पीछे बंदर नहीं है फिर भी पीछे मुड़ कर देख लेते हैं। बच्चा ताली बजा कर कहता है….मामा को उल्लू बनाया लेकिन हकीकत यह है कि मामा का उद्देश्य बच्चे को हंसता देखना होता है। नतीजा यह निकला कि “बच्चा भी खुश और मामा भी खुश”

कुछ ऐसा ही हुआ कुंवर चैन सिंह की शहादत स्थली सीहोर में पांच दिनों के अंदर, जब सड़कों पर कहीं ‘कमल’ खिला तो कहीं ‘पंजा’ लट्ठ लिए मिला।
24 जुलाई को कुंवर चैन सिंह की छतरी के इर्द-गिर्द गिरे घड़ियाली आंसूओं के समुन्दर में कागज़ों की किश्ती यों को तैरते हजारों लोगों ने मोबाइल पर अपनी नम आंखों से देखा। बात पुतला जलाने की थी जो कांग्रेस कार्यालय फूंकने तक जा पहुंची।
आष्टा में कांग्रेस का कार्यक्रम था। वहां भी वोट चोर कह कर परोक्ष रुप से स्तरहीन शब्द के जाल में कांग्रेस फंसी पड़ी थी। ‘चोर’ शब्द की जगह कोई और शब्द इस्तेमाल किया होता तो बात कुछ ओर होती। लेकिन यह शब्द ऊपर से भेजा गया है इसलिए हर शहर में परोसना जरुरी भी था।

खेर आष्टा से हम फिर वापस सीहोर लौटते हैं क्योंकि वहां “भैया” थे यहां नहीं…सीहोर वह शहर है जहां आसपास के जिलों की नेतागिरी पनपती है। सीहोर में डलहौजी की नीति “फूट डालो-राज करो” का यहां बाहर के कथित कूटनीतिज्ञ राजनेता कई दशकों से इस्तेमाल करते आए हैं। ट्रेन ‘राजधानी एक्सप्रेस’ यहां रुके या ना रुके लेकिन “राजधानी नेता एक्स्प्रेस” सीहोर में जरुर रुकती है। वो भी वहीं…जहां कोई आता-जाता नहीं,…और हार्न उनकी गाड़ी का यह पंक्ति उगलता है कि…अच्छा तो हम चलते हैं।
इस बीच बचपन की एक कहानी याद आ गई जिसका शीर्षक था “बड़े लोगों की कहानी”

कहानी कुछ यूं थी कि एक छोटा सा शहर था उसमें एक बहुत बड़े आदमी रहते थे। केवल पैसे से ही नहीं राजनीति में भी उनका बड़ा बोलबाला था।

एक दिन हुआ यूं वह बड़े आदमी
अपनी नई लग्जरी गाड़ी से रोड पर जा रहे थे‌। गाड़ी से एक सामान्य परिवार का आदमी टकरा गया, उसकी मृत्यु हो गई।
पूरे नगर में शोर मच गया..शोर थोड़ा ज्यादा हो गया, बड़े आदमी को थोड़ी सी फिक्र हुई …जिस मोहल्ले में वह सामान्य सा आदमी रहता था उसने मोहल्ले में अपने खास आदमी (जी हुजूरिया) को फोन लगाया।
कहा- आपको कुछ इनाम दे दिया जाएगा मामले को रखा दफा करो। जी हुजूरिए ने कहा जैसा हुकुम मेरे मालिक …यह बोलकर तुरंत उसने मृत आदमी के घर वालों से संपर्क किया और कहा कि पूरा मामला देखते हैं.. आपको पूरा मुआवजा दिलाया जाएगा,आपके नुकसान की भरपाई की जाएगी।
तथा उसे बड़े आदमी को सजा भी दिलाई जाएगी। सभी मोहल्ले वालों को लेकर थाने गए थाने में रिपोर्ट लिखवाई। उसे बड़े आदमी के खिलाफ नहीं बल्कि उसके ड्राइवर के खिलाफ।
ड्राइवर ने भी कबूल किया हां गाड़ी मैं ही चल रहा था।
साहब तो उस दिन गाड़ी में थे ही नहीं।..थाने से बाहर आकर उस चमचे ने मीडिया को बुलवाया परिवार को न्याय दिलाने की पूरी कसम खाई। ईंट से ईंट बजा देने की बात कही।उपस्थित लोगों ने ताली बजाई। मीडिया को विज्ञापन के साथ खबर दी गई। मीडिया ने भी उस अदने आदमी को नेता बना दिया।

अब कुछ दिन बाद,

मामला रफा-दफा हो गया,चर्चाएं समाप्त हो गईं। लोग पूरी घटना को भूल चुके थे। लेकिन बड़े आदमी के ड्राइवर साहब को केस अपने ऊपर लेने की एवज मे राजनीति में छोटा-मोटा पद मिल गया। कुछ पैसे मिल गए। मृतक के मोहल्ले में जिस व्यक्ति ने सेटिंग कराई थी। वह अपने मोहल्ले का बड़ा नेता बन गया। महंगी लग्जरी गाड़ी उसने भी खरीद ली थी। मृतक का परिवार ठगा सा रह गया।

इस कहानी के बाद प्रो वसीम बरेलवी का यह शेर भी मौजू है कि,
आसमा इतनी बुलंदी पे जो इतराता है
भूल जाता है कि ज़मीं से ही नज़र आता है !

राजेश शर्मा

राजेश शर्मा मप्र से प्रकाशित होने वाले राष्ट्रीय स्तर के हिंदी दैनिक अख़बारों- दैनिक भास्कर नवभारत, नईदुनिया,दैनिक जागरण,पत्रिका,मुंबई से प्रकाशित धर्मयुग, दिनमान के पत्रकार रहे, करीब पांच शीर्ष इलेक्ट्रॉनिक चैनलों में भी बतौर रिपोर्टर के हाथ आजमाए। वर्तमान मे 'एमपी मीडिया पॉइंट' वेब मीडिया एवं यूट्यूब चैनल के प्रधान संपादक पद पर कार्यरत हैं। आप इतिहासकार भी है। श्री शर्मा द्वारा लिखित "पूर्वकालिक इछावर की परिक्रमा" इतिहास एवं शोध पर आधारित है। जो सीहोर जिले के संदर्भ में प्रकाशित पहली एवं बेहद लोकप्रिय एकमात्र पुस्तक में शुमार हैं। बीएससी(गणित) एवं एमए(राजनीति शास्त्र) मे स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने के पश्चात आध्यात्म की ओर रुख किए हुए है। उनके त्वरित टिप्पणियों,समसामयिक लेखों,व्यंगों एवं सम्पादकीय को काफी सराहा जाता है। सामाजिक विसंगतियों, राजनीति में धर्म का प्रवेश,वंशवाद की राजसी राजनिति जैसे स्तम्भों को पाठक काफी दिलचस्पी से पढतें है। जबकि राजेश शर्मा खुद अपने परिचय में लिखते हैं कि "मै एक सतत् विद्यार्थी हूं" और अभी तो हम चलना सीख रहे है..... शैलेश तिवारी

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