
शैलेश तिवारी, संपादक
क्या तंत्र ने लोक को ठगा…?
लोकतंत्र में लोक के हित के लिए तंत्र की व्यवस्था की गई। वही तंत्र लोक की भावनाओं से उलट काम करने लगे तो कहा जा सकता है कि लोक अपने को तंत्र के हाथों ठगा सा महसूस करेगा।
बात है दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र गणराज्य भारत देश की..। जहां विपक्ष के नेता राहुल गांधी चुनाव आयोग पर मतदाता सूची में गड़बड़ी करने का आरोप सबूतों के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में लगाते नजर आए।
मुद्दा बहुत पहले से विपक्ष उठाता रहा कि ईवीएम में हेरफेर कर सत्ता हासिल की जाती है। मजे की बात यह है कि जब भाजपा प्रमुख विपक्षी दल की भूमिका में थी तो उसने भी यह आरोप लगाया और कांग्रेस ने भी विपक्ष की भूमिका में आकर यही आरोप लगाया। चुनाव आयोग चुनौती देता रहा कि आप आइए और ईवीएम को हैक करके दिखाइए परन्तु बात परवान नहीं चढ़ पाई यानि मुद्दा आया गया होकर रह गया।
2024 के आम चुनाव होते हैं तब भाजपा 400 पार का नैरेटिव गढ़ा गया और तमाम सर्वे भी यही बताने लगे लेकिन भाजपा 240 पर ही रुक गई। इससे पहले ऐसा नहीं हुआ था , तब विपक्ष को शक होता था कि ये जो संख्या बताते हैं वह हासिल कैसे हो जाती है। उस समय संदेह का अंकुरण होता तो ठीकरा ईवीएम के माथे फोड़ा जाता। भाजपा का चुनावी प्रबंधन विपक्ष को जहां तहां पटकनी देता नजर आने लगा और विपक्ष दृश्य से नदारद सा होता दिखा.. खासकर कांग्रेस।
लेकिन ताजा मामला इससे अलग है, इसमें तीन तीन राज्यों की मतदाता सूचियों में एक ही मतदाता का नाम होने का प्रमाण सार्वजनिक रूप से दिया जा रहा है। इंडिया गठबंधन की बैठक बुलाई जाती है । सभी नेताओं को उनका राजनैतिक भविष्य दिखाया जाता है तब एनसीपी के शरद पंवार यह कहने पर मजबूर हो जाते हैं कि इस प्रेजेंटेशन को गांव गांव में दिखाया जाना चाहिए।
कांग्रेस और विपक्ष के नेता राहुल गांधी इसे एटम बम बता रहे हैं। बम के रूप में उनकी बात सही भी है क्योंकि इसकी गूंज उन चैनलों और अखबारों में भी सुनाई देती है जो सत्ता के करीबी माने जाते हैं। यह बात जुदा है कि उनका नजरिया भी मुद्दे को लेकर सत्ता के हक में होता है।
गौर तलब बात यह है कि आरोप राहुल गांधी सहित समूचा विपक्ष चुनाव आयोग पर लगा रहा है और आयोग के बचाव में भाजपा के नेता प्रवक्ता उतर पड़े। उनका उतरना वाजिब इसलिए भी कहा जा सकता है कि आरोप वोट चोरी का है और उसी से सत्ता हासिल करने की बात कही जा रही है।
इसी कड़ी में अनुराग ठाकुर भी आते हैं और वायनाड सहित अन्य कांग्रेस की जीती हुई सीटों पर फर्जी वोट के आंकड़े प्रस्तुत करते हैं । उसके जवाब में कांग्रेस के पवन खेड़ा आकर वाराणसी लोकसभा सीट के आंकड़े पूछने लगते हैं। यहां तक पूरा संग्राम राजनैतिक सा दिखाई देता है लेकिन इसी बीच सुप्रीम कोर्ट दो मामलों में अपनी टिप्पणी देता है।
पहला मामला बिहार में चल रहे एसआईआर को लेकर है। जिसमें सर्वोच्च निर्देश आता है कि सभी 65 लाख वोटर के नाम आयोग की वेब साइट पर सार्वजनिक किए जाएं । वह भी कारण बताते हुए कि किसी भी वोटर का नाम क्यों काटा गया।
दूसरा मामला हरियाणा के पानीपत की एक पंचायत का है जिसमें सरपंच का चुनाव हारे प्रत्याशी ने सुप्रीम कोर्ट में रिट लगाई और कोर्ट ने ईवीएम बुलवाकर उसकी गिनती अपनी निगरानी में करवाई और हारा हुआ प्रत्याशी मतगणना में जीत गया।
इस मामले ने चंडीगढ़ मेयर चुनाव की याद दिला दी । जहां निर्वाचन अधिकारी मसीह ने कुछ वोट निरस्त करते हुए भाजपा उम्मीदवार को जितवा दिया लेकिन उच्च न्यायालय ने प्रक्रिया को अवैध बताते हुए मेयर के पद आप उम्मीदवार को सौंप दिया।
इन दो छोटे चुनाव में हुई धांधली निश्चित ही लोकतंत्र की हत्या जैसी घटना निरूपित होती है और यहीं से जनमानस के मन में सवालों को जन्म देती है कि क्या वाकई वोटों की हेराफेरी से सत्ता पाई जाती है? यह सवाल नया भी नहीं है। परन्तु यह गड़बड़ी छोटे चुनावों में ज्यादा होती रही बड़े चुनाव में इस तरह के मामले गिनती के रहे।
मगर इस बार जो कुछ भी विपक्ष के नेता ने सार्वजनिक किया है । वह सोचने पर मजबूर तो करता है। खासकर तब जब चुनाव आयोग उन गड़बड़ियों की जांच की बात नहीं करता। न ही सत्ता आयोग पर यह दबाव बनाती नजर आती है तो क्या यह मान लिया जाए कि दोनों यानी सत्ता और आयोग की मिलीभगत है अथवा विपक्ष हमेशा की अरण्य रुदन कर रहा है। यह जानने के लिए भी जांच तो जरूरी है। वगैर जांच के साबित कैसे होगा कि झूठ कौन बोल रहा है। जो भी जांच के बाद झूठा निकले उस पर कानूनी कार्यवाही भी हो। दोनों ही परिणाम देश के लोकतंत्र की अस्मिता को क्षति तो पहुंचाते हैं । संदेह के मंडराते बादल जांच की हवा से ही हट सकते हैं । लोकतंत्र में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए भी जांच जरूरी है। वह भी पूरी ईमानदारी से हो पुलवामा कि जांच की तरह नहीं, जिसके सार्वजनिक होने का इंतजार देश छह साल से कर रहा है।
शैलेश तिवारी , सीहोर