आगत के स्वागत हेतु वर्तमान में आयें चलो दीप जलाएं–सुधीर मोता
चलो दीप जलायें
अंधकार की भीत भेद प्रकाश पुंज का तीर चलायें
असमंजस के गहन कूप से विश्वास भरे बाहर आयें
होना होता है वनवास अगर, होकर रहता है
कभी तर्कहीन और मिथ्या प्रहार भी सहना होता है
आज अभी इस पल सब कुछ बिसरायें
स्वयं बनें बालक मन जब कुछ समझ ना आये
अहंकार से लैस बली महाबली सम्मुख आयें
रख संधि का भाव, ललकार युद्ध की ठुकरायें
कल से चंद्रकलायें , चढ़ती पर होंगी, हम आगे कदम बढ़ायें
नव उजास कीे धारा से हर दिन, अधिक अधिक पायें
कुछ तो होगी बात राम क्यों इस ही दिन घर आये
कुछ तो होगी बात चंद्र जब ओझल थे
महावीर का इस ही दिन केवल ज्ञान क्यों अंतिम देशना के पल थे
अमावसी रात्रि में ही कैसे ये क्यों कर आये
इसी बात की गांठ बांध लें दुख चरम बिंदु पर जब होता है
तभी आशा का सूर्य उदित सुख बिखराता होता है
आज इसी क्षण करें प्रयाण भीतर से बाहर आयें
तोड़ दुर्ग अवसादों के वनवास स्मृतियां भूलें
आगत के स्वागत हेतु वर्तमान में आयें
चलो दीप जलायें दीप जलायें
—सुधीर मोता