
भूतड़ी अमावस्या पर विशेष
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धार्मिक आस्था के केंद्र – आंवलीघाट एवं कालियादेव
इछावर/भैरुंदा,19 सितम्बर,2025
एमपी मीडिया पॉइंट टीम
धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं के अनुसार हिन्दू पूजा-पद्धति में अमावस्या से लेकर एकादशी तक अनेक प्रकार के व्रत एवं पूजन का विधान है। लोग अपनी आस्था एवं श्रद्धा के अनुसार विभिन्न धार्मिक स्थलों, तीर्थ स्थानों एवं पवित्र नदियों में स्नान और पूजा अर्चना कर पुण्य की प्राप्ति करते हैं।
भूतड़ी अमावस्या एक ऐसी तिथि है जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान और पूजा अर्चना करते हैं। भूतड़ी अमावस्या नाम से कई लोगों को भूतों से जुड़ी अमावस्या होने का भ्रम हो जाता है, लेकिन इसका भूतों से कोई संबंध नहीं है। वास्तव में इसका अर्थ नकारात्मक विचारो से मुक्ति पाना है। यह नकारात्मक विचार किसी भी रूप में मस्तिष्क में हो सकते हैं। भूतड़ी अमावस्या पर ऐसे नकारात्मक विचारों से मुक्ति या त्याग के लिए पवित्र नदियों में स्नान का विधान है। सीहोर जिले में नर्मदा तट पर स्थित आवंलीघाट और इछावर के नादान के नजदीक कालियादेव ऐसे दो पवित्र स्थान है जहॉं बड़ी संख्या में श्रृद्धालु पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। इछावर तहसील के ग्राम नादान के पास घने जंगलों में कालिया देव स्थान पर विशाल मेला लगता है।
नर्मदा तट पर स्थित आवंली घाट का पौराणिक महत्व
आंवलीघाट का आध्यात्मिक दृष्टि से खासा धार्मिक महत्व है। बड़ी संख्या में श्रृद्धालु दूर-दूर से मॉ नर्मदा में डुबकी लगाने पहुंचते हैं। यहां पर हत्याहरणी हथेड़ नदी एवं नर्मदा का संगम स्थल हैं। इस कारण इसका महत्व और अधिक है। कहा जाता है कि पांडवों ने अपने वनवास काल के दौरान कुछ समय यहां बिताया था। एक किवदंती यह भी प्रचलित है कि महाभारत युग में भीम द्वारा मां नर्मदा से विवाह करने के लिए नर्मदा नदी का जल प्रवाह रोकने के लिए जो चट्टाने यहां नर्मदा में डाली थीं, वह आज भी वहीं जमीं हैं। एक अन्य किवदंती के अनुसार लक्ष्मीजी रथ पर सवार होकर यहां कुंती से मिलने आई थी। उस रथ के पहियों के निशान आज भी पत्थरों पर दिखाई देते हैं। आंवली घाट पर लक्ष्मी कुंड, ब्रह्म पाश, भावनाथ बाबा की टेकरी, छोटे दादा धूनीवाले का स्थान नर्मदा मंदिर, हनुमान मंदिर, राम जानकी मंदिर दोनों ओर प्राचीन काल का नर्मदा मंदिर एवं राम जानकी मंदिर सहित अन्य मंदिर स्थित हैं।
पुरातनकालीन कालियादेव मेला
कालियादेव मेला जनजातीय संस्कृति और परंपरा की अनुपम छटा बिखेरता है। आज भी जनजातीय वर्ग के लोग अपनी अमूल्य सांस्कृतिक विरासत संजोए हुए हैं। वे आदिम संस्कृति को छोड़े बिना वर्तमान के साथ संतुलन स्थापित कर अपने जीवन में वास्तविक आनंद पलों को खोज लेते हैं।
इछावर तहसील मुख्यालय से 23 किलोमीटर दूर ग्राम नादान के पास सागौन के घने जंगलों में कालिया देव नामक स्थान है। यहां से निकली सीप नदी पर कालिया देव का झरना है। यहॉं हर वर्ष पितृ मोक्ष अमावस्या पर रात्रि में मेला लगता है। झरने के पास ही एक छोटा मंदिर है। कालिया देव मंदिर के नीचे एक गहरा कुंड हैं जिसमें सीप नदी का पानी गिरता है। इस गहरे कुंड को यहां के जनजातीय बंधु पाताल लोक का रास्ता भी कहते हैं। यहॉ कई ऐसे स्थल हैं जो प्राकृतिक सौंन्दर्य से भरे हैं। भूतड़ी अमावस्या पर इस क्षेत्र के जनजातीय समुदाय के महिला, पुरूष, बच्चे बड़ी संख्या में शाम को पहुंचने लगते हैं। सीप नदी में कालियादेव की पूजा अर्चना करते हैं। यहॉं रात्रि में विशाल मेला लगता है। इस मेले में एक लाख से अधिक लोग आते हैं।
खासबात यह कि रातभर मेले में खरीदारी और सीप नदी के तट पर ओझाओं द्वारा तांत्रिक क्रिया भी चलती रहती है। लोगों का मानना है। इन क्रियाओं के चलते और नदी के पानी से स्नान के पश्चात शरीर से ऊपरी वाधाएं दूर हो जाती हैं।
मीडिया की अलग से नमक-मिर्च मिली मसालेदार भाषा में इस आस्था और विश्वास से ओतप्रोत पुरातन कालीन मेले को “भूतों का मेला” कहने लगे हैं मुट्ठी भर लोग। कुण्ड के नजदीक गाय के दो खुर के निशान,अल्लीपुर की गुफाओं का एतिहासिक महत्व है। जिसका विस्तार से इतिहासकार राजेश शर्मा द्वारा लिखित “पूर्वकालिक इछावर की परिक्रमा” में सचित्र वर्णन मिलता है।