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चेहरे में चेहरा…!!- तबस्सुम परवीन

समसामयिक

चेहरे में चेहरा…!!

तबस्सुम परवीन, अंबिकापुर(छग)
साहित्यकार एवं चिंतक

इस रूपहले परदे के बाहर भी एक दुनियाँ है .
परदे की दुनियाँ के पीछे भागती दुनियाँ.
परदे पर उड़ती तितलियों के स्वप्न में डूबी दुनियाँ
थिएटर के अंधेरे में बैठकर परदे की रंगीनियों में खोयी दुनियाँ !
फटीं पैंट पहने रेशमी वस्त्रों के जाल में फँसी दुनियाँ !!
टी॰वी॰ में डूबकर टीवी की शिकार हुई दुनियाँ !
सही कहूँ , यही है असली दुनियाँ !
अपने से बेख़बर और लुटेरों की चकाचौंध में मस्त दुनियाँ .
जब जागेगी और टूटेंगे ख़्वाब तिलिस्मी दुनियाँ के
तब ,
चारों तरफ़ से घेर लेंगे असल सवाल ज़िंदगी के
लाइट के जाते ही घेर लेगा घुप्प अँधेरा
और ग़ायब हो जाएँगे सभी ख़ूबसूरत चलचित्र
भूतहा लगने लगेगी स्क्रीन ,
और उतर जाएँगे एक एक कर सारे रेशमी वस्त्र .
तब खिड़कियाँ खोलना और देखना अनावृत दुनियाँ.
कहीं भूख तो कहीं बेकारी
क़दम क़दम पर फैली हुई लाचारी
कहीं बेसब्र छलाँगें लगाती महँगाई
कहीं जलती औरतें तो कहीं क़त्ल हुई औरतें
कहीं बाज़ार में ख्वाब़ बेचती औरतें .
घर , बाहर , घास , लकड़ियों की गठरी में बंधी औरतें .
कहीं वेवफ़ाई के क़िस्से तो कहीं वेवजह टूटते रिश्ते .
शरद की रातों में फुटपाथ पर सोए बच्चे
लू के थपेड़ों से बेज़ार बच्चें तो कही ठंड में ठिठुरते बच्चे .
ढाबों , दुकानों , फ़ैक्टरी ,खदानों में
काम के बोझ से दबे बच्चे .
कंकाल सी देह से चिपके भूखे बच्चे.
और निर्जीव देह से बच्चों को प्राण देती हुई माँ !!
इंसाफ़ के मंदिर से इंसाफ़ से महरूम दुनियाँ
लाचार क़दमों से वापस घर को लौटती दुनियाँ !
ये मंज़र देख के शायद नीद न आए
कोई सुनहरा ख़्वाब टूट जाए .
और भूल जाएँ सपने भी अंगड़ाई लेना .
जब थके क़दम , क़दम रखेंगे दहलीज़ पर
और भरभरा के गिर जाएगा रेत का बदन .
तब करना शिनाख्त कि यह टूटा हुआ कौन है
पेड़ , टहनियाँ या कि हरी पत्तियाँ .
तब अहसास हो , शायद कि यही असली दुनियाँ है .
और इसी दुनियाँ को बदला जाना बहुत ज़रूरी है .
कितनी पीड़ा देता है उम्मीदों का टूटना!
बिखरना सपनों का और होसलों का तार , तार होना !
चंद्रमा जिनकी सर्च लाइट है और सूरज हीरा .
कभी ऐसे मंच पर भी जाना और देखना
कि दुनियाँ की सबसे चमकदार चीज़ लोगों का चेहरा है .
और सबसे क़ीमती हीरा सूरज है .
सूरज ! सबको रोशनी देनेवाला !
तब लगेगा और ज़रूर लगेगा कि
असली दुनियाँ यही है और अपनी दुनियाँ
यही है ! यही है ! हाँ बिल्कुल यही है .
और ,
यही दुनियाँ बदले जाने के इंतज़ार में खड़ी है .
और ,
तुम्हारे उठ खड़े होने की प्रतीक्षा में है .

.

राजेश शर्मा

राजेश शर्मा मप्र से प्रकाशित होने वाले राष्ट्रीय स्तर के हिंदी दैनिक अख़बारों- दैनिक भास्कर नवभारत, नईदुनिया,दैनिक जागरण,पत्रिका,मुंबई से प्रकाशित धर्मयुग, दिनमान के पत्रकार रहे, करीब पांच शीर्ष इलेक्ट्रॉनिक चैनलों में भी बतौर रिपोर्टर के हाथ आजमाए। वर्तमान मे 'एमपी मीडिया पॉइंट' वेब मीडिया एवं यूट्यूब चैनल के प्रधान संपादक पद पर कार्यरत हैं। आप इतिहासकार भी है। श्री शर्मा द्वारा लिखित "पूर्वकालिक इछावर की परिक्रमा" इतिहास एवं शोध पर आधारित है। जो सीहोर जिले के संदर्भ में प्रकाशित पहली एवं बेहद लोकप्रिय एकमात्र पुस्तक में शुमार हैं। बीएससी(गणित) एवं एमए(राजनीति शास्त्र) मे स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने के पश्चात आध्यात्म की ओर रुख किए हुए है। उनके त्वरित टिप्पणियों,समसामयिक लेखों,व्यंगों एवं सम्पादकीय को काफी सराहा जाता है। सामाजिक विसंगतियों, राजनीति में धर्म का प्रवेश,वंशवाद की राजसी राजनिति जैसे स्तम्भों को पाठक काफी दिलचस्पी से पढतें है। जबकि राजेश शर्मा खुद अपने परिचय में लिखते हैं कि "मै एक सतत् विद्यार्थी हूं" और अभी तो हम चलना सीख रहे है..... शैलेश तिवारी

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