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सुबह एक रात की… ,वेस्टइंडीज़ से डॉ अजय शर्मा

लेख

सुबह एक रात की… ,वेस्टइंडीज़ से
डॉ अजय शर्मा

सितंबर माह…… साल 1965 !!

भारत और पाकिस्तान के दरमियान जंग अपने चरम पर । कई मोर्चो पर दोनो फौजों के बीच घमासान । लाहौर की और बढ़ती भारतीय सेना को रुकावटें डालती और चुनौती देती, अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को उपलब्ध कराई गयीं आधुनिकतम तोपें ।

तय हुआ की इन तोपों से निपटने के लिए भारतीय वायुसेना की सेवाएं ली जायेंगी । बमवर्षक विमानों ने अमृतसर ऐयर-बेस से उड़ान भरी और चंद मिनिटों मे गगन मे छा गये । इन्ही मे से एक विमान मे थे फ्लाइंग आफिसर जुरेल । छरछरे बदन के मात्र 22 वर्षीय जुरेल को वायुसेना मे आये अभी दो ही साल हुए थे और यह उनका पहला मिशन था ।

लाहौर शहर के बाहर, ऊंचाइयों पर, भारतीय विमानों ने आक्रमण का समीकरण बनाया ।

देश के लिए कुछ भी कर गुज़रने का जज्बा, जोश और उमंग से भरे जुरेल ने पाकिस्तानी तोपों पर कहर बरसाना शुरू किया । देखते- देखते भारतीय विमानों ने कई पाकिस्तानी तोपें उड़ा दीं ।

मिशन पूरा कर सभी विमान वापस भारतीय सीमा मे लौटने को हुए की, तभी जुरेल को अपनी सीट के नीचे एक जोरदार धक्का लगा । किसी पाकिस्तानी ‘एन्टी-एयर-क्राफट मिसाइल’ ने उनके विमान को हिट कर दिया था और विमान मे आग लग गयी । उनका पूरा कॉकपिट धुंऐ से भर गया । विमान का इंजन फेल हो चुका था और वो तेज़ी से नीचे आने लगा । बाकी विमानों और हेडक्वार्टर से उनका सम्पर्क टूट चुका था । कोई और उपाय ना देख उन्होंने ‘Eject’ बटन दबाया और पैराशूट के सहारे पाकिस्तानी सीमा मे गिरे ।

जुरेल की किस्मत अच्छी थी की जिन खेतों मे वो गिरे वहां अभी तक फसल की कटाई नहीं हुई थी और घास काफी ऊंची थी । जुरेल ने तुरत-फुरत एक गड्डा खोदकर अपना सारे फौजी दस्तावेज उसमे छुपा दिये । दूर-दूर तक फैले उन खतों मे अगले कई घंटों तक उन्होंने अपने को बहुत मुश्किलों का साथ पाकिस्तानी सैनिकों से छुपा कर रखा और रात होने का इंतजार करते रहे ।
धीरे-धीरे अंधेरा हुआ और जुरेल सावधानी से उन खेतों मे छुपते-छुपाते भारतीय सीमा की और बढ़ने लगे । रात की मद्धिम सी चांदनी, लगातार बादलों के साथ लुका-छुपी खेल रही थी ।

खेतों से निकल, एक कच्ची सड़क पार कर वो अभी आगे बढ़े ही थे कि दूर कहीं से आते हुए वाहनों का शोर सुनाई दिया । जुरेल ने भागकर पास ही एक कच्चे, छोटे-से ‘झोपड़ीनुमा’ जगह पर ओट ली ।

अभी वो उस झोपड़ी मे घुसे ही थे कि उन्हें वहां किसी लड़की की परछाई दिखाई दी । अगले ही क्षण जुरेल ने उस लड़की को दबोचा । तब तक फौजी वाहन बहुत करीब आ चुके थे । एक वाहन तो कुछ क्षणों के लिए वहां रुका भी । फिर धीरे-धीरे वो वाहन वहां से चले गये ।

लड़की को तो जैसे काटो तो खून नही, चेहरा भय से ‘फक’ । वो ‘थर-थर’ कांप रही थी । जुरेल ने अपनी पकड़ को हल्का सा ढ़ीला कर कहा.. “घबराओ नहीं तुम्हे नुकसान नहीं पहुंचाउंगा” । आवाज़ सुनकर लड़की बोली.. “आप हिन्दुस्तान से हैं” ? . अपने आप को पहचाने जाने पर जुरेल ने दोबारा लड़की को दबोचा, इस बार पहले से भी कहीं अधिक ताकत से । लड़की की सांसें उखड़ने लगी, आंखें उपर नीचे होने लगी । वो टूटी आवाज़ मे बोली.. “मै..मै..भी..भी..तो..तो..हिन्द..हिन्दुस्तान .से” । यह सुनकर जुरेल ने उस लड़की को कुछ राहत दी ।

फिर उस लड़की ने अपनी कहानी सुनाई। “मेरा नाम महक है”..कालेज का मेरा दूसरा साल चल रहा था । तभी, करीब एक साल पहले मुझे छलावे से, झूठी शादी करा के, यहां पास के एक गांव मे लाया गया । ससुराल वाले तरह-तरह की यातना देते हैं । बमबारी के चलते अभी कुछ घंटे पहले ही आसपास के सभी गांव खाली कराये गये हैं । यहां से कुछ दूर एक कैंप मे सबको रखा गया । वहां से हम सब को फिर कहीं और ले जाने वाले थे । उसी कैंप मे मेरी एक सहेली, जो मेरे ससुराल वालों की रिश्तेदार भी है, उसने दबी जुबान मे बताया कि ससुराल वालों ने एक मोटी रकम लेकर मुझे ‘कराची’ मे कहीं बेच दिया है । इसके पहले की ससुराल वाले मुझे कराची भेज पाते जंग शुरू हो गयी । अभी मेरी सहेली मुझे यह सब बता ही रही थी कि आसमान मे कई हवाई जहाज एक साथ दिखे और सब लोग जान बचाकर भागे । बेचे जाने के बाद मेरी जिन्दगी और भी बदतर हो जाती, बस यही सोच कर मै वहां से भाग खड़ी हुई । ‘साहब’ …”अपना मुल्क और आज़ादी क्या होती है, यह तो मैने यहां आकर ही जाना है” । “जहन्नुम से भी बदतर है यहां ज़िन्दगी” । “मुझे अपने वतन लौटना है”…कहते कहते उसकी आंखों से आंसुओ की एक मोटी धार बह निकली ।

कुछ क्षणों तक जुरेल के अंतर्मन मे द्वंद चलता रहा कि दुश्मन मुल्क मे वो एक अंजान लड़की की बातों पर भरोसा करें या नही ? इसे अपने साथ रखें या नही ??..मगर शायद उस फौजी की पारखी आंखों ने सच को भांप लिया था !!

बिना कुछ खाये और बिना पानी की एक बूंद के, जुरेल को बीस घंटे से भी अधिक हो चुके थे । उन्हें डर था की कहीं बेहोशी उन्हे अपने आगोश मे ना ले.. ले और वो दुश्मनों के हाथ ना लग जायें । भूख-प्यास और थकान से शिथिल वो बमुश्किल खड़े हो पा रहे थे । जुरेल ने पानी मांगा !! महक ने कहा की उसका घर पास ही है !! गांव इस वक्त खाली है.. “आप मेरे घर पर कुछ खा-पी सकते हैं” ।

दोनों महक के घर पहुंचे और पीछे का दरवाज़ा तोड़ अंदर दाखिल हुए । कछ खा-पीकर जुरेल काफी बेहतर महसूस कर रहे थे । इस बीच महक ने कुछ ज़रूरी समान साथ रखा और बिना समय गंवाये दोनों तुरंत वहां से निकले ।

छुपते-छुपते दोनों काफी आगे निकल आये । अब वो एक गाँव के बाहर से गुजर रहे थे की तभी आवारा कुत्तों की टोली से उनका सामना हो गया । इसके पहले की कुत्ते हरकत मे आते और शोर मचाते, जुरेल ने सामान मे रखे ‘मीट’ के कुछ टुकड़े उनकी और उछाल दिये ।

घनी झाड़ियों का सहारा लेते दोनों अंधेरे मे आगे बढ़े, तभी उन्हें पास ही कहीं पाकिस्तानी फौजियों के होने का एहसास हुआ । दोनों उस घने झुरमुट मे दुबक गये । शायद फौजियों को भी झाड़ी मे किसी के होने का शक हो गया था । फौजियों ने उन्हे ‘चैलेंज’ किया, मगर दोनों अंधेरे मे सांस थाम कर खड़े रहे । फिर एक फौजी ने फायर कर दिया । गोली जुरेल के कान के बगल से होती हुई निकल गयी । तभी गोली की आवाज़ से डरकर उन झाड़ियों मे से कोई जानवर भागकर निकला । शायद कोई बड़ा बिलाव रहा होगा । किसी भागते जानवर की ‘धुंधली-सी’ छाया देखकर पाकिस्तानी सैनिक थोड़े आश्वस्त हुए और वहां से हट गये ।

कई खेत पार करते वो अब एक और गांव के करीब पहुंचे । गांव से कुछ ही दूरी पर, कमर तक गहरी एक नहर थी जिसे पार करना इंतहा ज़रूरी था । नहर पर पाक फौजी गश्त दे रहे थे । दूर कही से उनकी आवाज़ें आ रही थीं और उनके होते नहर पार करना लगभग नामुमकिन ही था ।

रात गहरा रही थी, और युद्ध भी ज़ोरों पर था । रह-रह कर आकाश ‘आर्टिलरी फायरिंग’ से चमक उठता था ।

कशमकश मे डूबे जुरूल ने आखिर नहर पार करने का उपाय ढूंढ ही निकाला । वो तेज़ी से गांव की और मुड़े । गांव मे मवेशियों के लिए सूखे चारे के दर्जनों ऊंचे-ऊंचे ढेर थे । छुपते-छुपते उन्होंने चारे के कई ढेरों मे आग लगा दी और वापस नहर की और भागे । इधर पाक फौजियों का ध्यान बटा और फौजी आग की और दौड़े और उधर अंधेरे का फायदा उठाकर जुरेल और महक नहर मे कूद कर, घनी झाड़ियों मे गुम हो गये ।

आगे का सफर और भी कठिन था । कहीं कटीली झाड़ियां, कहीं कीचड़, कहीं घुटनों तक पानी, तो कहीं दलदल । कभी वो भागते, तो कभी पकड़े जाने के भय से घुटनों के बल रेंगते । कहीं पैर उलझ जाता तो गिर पड़ते.. ..उठते…. संभलते और फिर आगे बढ़ जाते । ऐसे ही भागते-भागते महक एक गड्डे मे गिर गयी । गड्डा गहरा था और, अंधेरे मे जुरेल को उसे बाहर निकालना मुमकिन नही हो पा रहा था । संयोग से पास ही एक खेत के कुंऐ पर रस्सी-बालटी थे । कुछ देर की कोशिश के बाद जुरेल ने रस्सी के सहारे महक को बाहर निकाल लिया ।

भोर होने ही वाली थी और जुरेल को एहसास हुआ कि वो भारतीय सीमा मे प्रवेश कर गये हैं । सड़क, हाईवे उन्हे जाने-पहचाने लगे । उन्होंने आसपास भारतीय सैनिकों की आवाज भी सुन ली । फिर झाड़ियों से बाहर निकल, अपने दोनों हाथ ऊपर उठाकर उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया । महक ने भी अपने साथ लाये कागज़ात दिखाये और जुरेल ने भारतीय सैनिकों से आग्रह किया कि महक को आगे की कार्यवाही के लिए पुलिस के हवाले कर दिया जाये ।

आर्मी की एक स्पेशल टीम भी आ गयी । तब शायद पहली बार जुरेल और महक ने एक दूसरे को ठीक से देखा । जुरेल ने महक का हाथ थाम कर उसे ढाढस बंधाते हुए कहा….“अब डरने की ज़रूरत नहीं, तुम अपने वतन लौट आयी हो”.. “अंधेरी रात के साथ ही तुम्हारा वो खौफनाक कल भी खत्म हो गया,.. अब तुम एक नयी जिन्दगी की शुरूआत कर सकती हो” । इतनी देर साथ रहने के बाद भी तुमसे बात करने का वक्त नहीं मिला..-“चलो जंग खत्म होने के बाद फिर मिलते हैं, बैठकर तफ़सील से कुछ बातें करेंगे” ।

‘वतन लौटने की खुशी’,.. ‘जिल्लत की जिन्दगी का अन्त’…और दिल की गहराईयों से उमड़ती जुरेल के प्रति आपार ‘कृतज्ञता’…. महक के आंसू थे कि थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे । एक आखिरी बार महक ने अपने दोनो हाथों जोड़ कर जुरेल को विदा कहा । उसकी भरी आंखे वो सब कह गयीं जो वो खुद ना कह सकी । और फिर वो आर्मी जीप मे बैठकर चली गयी ।

काफी सघन छानबीन के बाद जुरेल को एयरफोर्स के स्टेशन कमांडर के सुपुर्द कर दिया गया । कमांडर ने जुरेल को पहचान लिया । जुरेल ने अपने अफसर को पूरा किस्सा सुनाया । अभी उनकी बातचीत खत्म हुई ही थी की पाकिस्तानी विमानों ने वहां हमला कर दिया । जुरेल और उनके कमांडर ने तुरंत भागकर अपने आपको बंकरों मे सुरक्षित किया । जहाजों के निकल जाने के बाद कमांडर ने जुरेल की और देखा..जुरेल मुस्कराये और बोले.. ‘सर’…”करोड़ों दुआएं मेरे साथ हैं”…. “मेरा अभी मरने का कोई इरादा नहीं है” ..अफसर भी उनकी पीठ थपथपाते हुए बोले… “ 36 घंटे मे तीन बार मौत को चकमा दे चुका एक शख्स, जिसने देश की खातिर ना सिर्फ अपना मिशन पूरा किया, बल्कि देश की एक महिला को भी बहुत ही संगीन हालात मे दुश्मन मुल्क से सुरक्षित वापस निकाल लाया, ऐसा काम तो इस सरज़मी का कोई जांबाज शेर ही कर सकता है”…। “मुझे बहुत फक्र है की वो आफिसर मेरी यूनिट का है” । आज ‘आफिसर मेस’ मे जश्न होगा ।

मेडिकल जांच मे सब कुछ ठीक पाने पर जुरेल दोबारा एयरफोर्स ड्यूटी पर लौटे । युद्ध समाप्ति के बाद उन्हे कई मेडल से नवाज़ा गया । तमाम अखबार और मैग्ज़ीन, मे उनके चर्चे हुए ।

युद्ध समाप्त हुए तीन साल बीत गये । जुरेल अपने आफिस मे थे । अब भी उनके पास बधाई संदेश आते रहते । आज भी उनकी टेबल पर कई पत्र थे । वो खुशी-खुशी उसे खोलते जाते । तभी उनकी नज़र अपनी टेबल पर रखी एक बड़ी पार्सल पर गयी । उन्होंने उसे खोलकर देखा तो अंदर हाथ से बनी एक खूबसूरत पेंटिंग थी । वो पेन्टिंग कई हिस्सों मे थी ।

पेन्टिंग के पहले भाग मे… ‘उपर आसमान मे बादलों मे छुपा आधा चांद और चंद सितारे’। ‘नीचे जमीन पर, धुंधले अंधेरे मे दिखाई देती एक टूटी-फूटी झोपड़ी’, ‘कुछ खेत’, और एक ‘पगडंडी’ । पगडंडी के आगे एक लड़का….किसी भयभीत … सहमी-सी.. लड़की को हाथ पकड़ कर नहर पार करने मे मदद कर रहा है ।

पेन्टिंग के दूसरे हिस्से मे… ‘अंधेरा छट कर, सूर्योदय हो रहा है’,…’पंछी चहचहा रहे है’… और आसमान तले..खुली हवा मे.. वही लड़की ‘खिलखिला रही है’ ।

पेन्टिंग के तीसरे हिस्सा मे शायद किसी बैंक का नज़ारा था । “सौम्य सी दिखती, वही लड़की…मुस्कुराहट के साथ अपने क्लाइंट् का अभिवादन कर रही है” ।

पेन्टिंग का नीचे का हिस्सा जुरेल का लिए दुआओं और शुभकामनाओं से भरा था ।

उसी पेन्टिंग के साथ एक छोटे सा कार्ड था, जिस पर लिखा था :

“सादगी तो हमारी ज़रा देखिये, ऐतबार आपके वादे पर कर लिया.. ! बात तो सिर्फ एक रात की थी मगर, इंतजार आपका उम्र भर कर लिया” ।।

कार्ड पर कोई नाम तो नहीं था, अलबत्ता किसी लेन्डलाइन का नम्बर जरूर था ….
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(किसी वास्तविक घटना से प्रेरित यह काल्पनिक कहानी, राष्ट्र-प्रहरियों के अदम्य शौर्य को समर्पित है, जो अपनी जीवन की परवाह ना कर देश की रक्षा करने को सदैव तत्पर रहते हैं । हम सदैव उनके कृतज्ञ रहेंगे !!)

डॉ अजय शर्मा

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