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हिंदी पत्रकारिता दिवस: कहां जाना था, कहां आ गए हम – राजेश शर्मा

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  • हमे कहाँ जाना था हम कहाँ आ गए- – –

राजेश शर्मा

200 वर्ष की उम्र के नजदीक पहुंने जा रही हैहिन्दी पत्रकारिता, अवसर पर समारोह होंगे, कार्यक्रम होंगे, बुद्धिजीवी व्याख्यान देगें, हिंदी पत्रकारिता की दुर्दशा पर रोने रोए जाएंगे, अंग्रेजी न्यूज़ पेपर को नीचा दिखाया जाएगा, भाषाई समाचार पत्र के गिरते स्तर पर सरकार , समाचार पत्र मालिकों को दोषी ठहराया जाएगा, न जाने कितने मुद्दों पर बहस होगी और कार्यक्रम का समापन हो जाएगा।
— — — फिर मिलेंगे अगले वर्ष
बोलकर वही जो होता आ रहा है उसे दोहराया जाएगा — — –आज का दिन अगले वर्ष फिर आएगा – – –
मगर एक शब्द भी सुनने को नहीं मिलेगा कि हिंदी के अखबार या न्यूज़ चेनल मे अंग्रेजी शब्दों के समावेश का दोषी कौन? क्या मालिक – – क्या पूंजीवाद – – -क्या बाजारवाद – – -? कि हम खुद जिसने पत्रकारिता को नई परिभाषा दी हमने ही तो बताया कि फायदा किसमे है – – -वो तो पुश्तैनी बनिया था उसे तो बनने से मतलब था – – -हम जैसे ही तो थे जो उसकी ठोकरों पर कलम रख घर आकर चेन की नींद सो गए – – -हमने अपनी खुद्दारी को बेंचा — — –कोई मतलब नहीं अब रोना रोने का – – -सांप निकल चुका किस्मत मे लिखा ही था लकीरें पीटते रहने का – – -अंग्रेजी अखबारों ने कभी हिंदी शब्द का इस्तेमाल नहीं किया – – -और एक हम हैं कि हिंदी के अखबारों और न्यूज़ चेनलों को अंग्रेजी शब्दों से पाट रहे हैं – – – –
और आज खुद ही खुद की करनी का फल भोग रहे हैं – –
दोषी दूसरों को ठहरा रहे हैं । लम्बा लिखने की आदत नहीं – – -खासतौर पर जब – – -खुद ही की बिरादरी पर लिखना पड़े।

और अंत में

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